पथ के साथी

Friday, August 4, 2023

1344-संताप

अनीता सैनी 'दीप्ति'

 




उन्होंने कहा-

उन्हें दिखता है, वे देख सकते हैं

आँखें हैं उनके पास।”

होने के

संतोष भाव से उठा गुमान

उन सभी के पास था 

वे अपनी बनाई व्यवस्था के प्रति

सजगता के सूत कात  रहे थे

सुःख के लिए किए कृत्य को

वे अधिकार की श्रेणी में रखते  

उनमें अधिकार की प्रबल भावना थी 

 नहीं सुहाता उन्हें!

वल्लरियों का स्वेच्छाचारी विस्तार

वे इन्हें जंगल कहते 

उनमें समय-समय पर

काट-छाँट की प्रवृत्ति का अंकुर

फूटता रहता 

वे नासमझी की  हद से 

पार उतर जाते, जब वे कहते-

उसके पास भाषा है।”

मैं मौन था, भाषा से अनभिज्ञ नहीं 

वे शब्दों के व्यापारी थे, मैं नहीं

मुझे नहीं दिखता!

वह सब जो इन्हें दिखा देता  

नहीं दिखने के पैदा हुए भाव से 

मैं पीड़ा में था, परीक्षित  मौन 

यह वाकया- बैल ने गाय से कहा।

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5 comments:

  1. गहरे अभाव लिए सुंदर कविता। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना, हार्दिक। बधाई आपको ।

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  3. बड़ी ही रहस्यमय ,गम्भीर रचना| हृदय स्पर्शी और अमूल्य विचारों से भरपूर| हार्दिक बधाई -श्याम हिंदी चेतना

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  4. बहुत सशक्त कविता,प्रभावी व्यंजना।बधाई अनीता दीप्ति जी।

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  5. सार्थक कविता सृजन । हार्दिक बधाई ।
    विभा रश्मि

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