पथ के साथी

Tuesday, April 11, 2023

1312-चार कविताएँ

 अर्चना राय


1

 प्रेम में पड़ी स्त्री

पुरुष के लिए

सफलता की सीढ़ी

 बन जाती है... 

वहीं...

प्रेम में पड़ा पुरुष

सफल होती स्त्री के पैरों की

बेड़ी बन जाता है... 

 2

 

कलम हाथ में

 लेते ही.. 

 स्त्री और पुरुष

का अंतर... 

भूल केवल अपना

 साहित्य धर्म निभाती हूँ....  

 यहाँ वहाँ, दिखते

 हर तरफ... 

आदमी ही आदमी

मगर आदमियत

 नदारद- सी है.... 

 3

हर तरफ शोर ही शोर

बिखरा कोलाहल है

फिर भी न जाने क्यों

तन्हा- सा दिखता

हर आदमी है... 

-0-

4- आखिर क्यों

 

 

महज चार मंत्रों और

अग्नि के कुछ चक्कर

लगा लेने भर से... 

एक स्त्री, ... 

पुरुष के लिए

एक इन्सान से.... 

उपयोगी वस्तु में

बदल जाती हैं... 

तो फिर पुरुष भी

स्त्री के लिए

कोई वस्तु क्यों नहीं बनता

जबकि उसने भी तो

साथ ही चक्कर लगाए हैं... 

अग्नि के इर्दगिर्द.... 

स्त्री के पल्लू से बँधकर... 

18 comments:

  1. पुरुष-सत्ता की मानसिकता की अभिव्यंजक सशक्त कविताएँ,प्रथम कविता बेहद प्रभावी।बधाई अर्चना राय जी।

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    1. सराहना के लिए हृदय से आभार आदरणीय

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  2. बहुत ही सुंदर 🙏

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  3. सुंदर रचनाएं, हार्दिक बधाई आपको

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  4. धन्यवाद आदरणीय

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  5. स्त्री पुरुष के अंतर के द्वन्द में उलझी सुंदर कविता है । हार्दिक बधाई। सविता अग्रवाल “ सवि”

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  6. बहुत सुंदर रचनाएँ।हार्दिक बधाई आपको।

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  7. वाह, लाजवाब अभिव्यक्ति

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  8. पुरुष वर्ग की मानसिकता का सुंदर विश्लेषण करतीं उम्दा कविताएँ। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  9. अर्चना जी आपकी दोनों रचनाएं पढकर मुझे ऐसा लगा कि पुरुष है किस धातु का बना हुआ प्राणी है | स्त्री पुरुष दोनों ही भगवान के बनाए हुए हैं किन्तु यह भिन्नता क्यों ? आपने मेरी आँखें खोल दीं |बहुत ही सत्य और हृदय स्पर्शी ! श्याम हिन्दी चेतना

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  10. आदरणीय आपकी टिप्पणी पढ़कर बहुत अच्छा लगा.... आपकी सराहना निसंदेह मेरे लिए उत्प्रेरक की तरह है.जो और गहनता से साहित्य धर्म निभाने मुझे प्रेरित कर रही है... धन्यवाद आपका....

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  11. बहुत सुंदर रचनाएँ

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  12. बहुत सुंदर रचनाएँ...हार्दिक बधाई।

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  13. 'आखिर क्यों' के सवाल तो शायद हर स्त्री के मन को मथते होंगे, उन्हें ख़ूबसूरती से प्रस्तुत करने के लिए बहुत बधाई | क्षणिकाएँ भी बहुत अच्छी हैं , बधाई

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