पिता नहीं उफ़ करता है
पीयूष श्रीवास्तव
सुबह
सवेरे घर से मेरे, एक कर्मठ
राही निकलता है
दिन
भर धूप से लेता लोहा, सूरज के संग जलता है
होती हो बादल की गर्जन, या घिर जाए भीषण बरसात,
उस
राही की आँखों में भाई, इन सब की नहीं कोई बिसात
हर
मुश्किल हर कठिनाई से, लड़ने की हिम्मत रखता है
खून
पसीना इक हो जाए पर, पिता नहीं
उफ़ करता है।
नन्हे- नन्हे बच्चों की अपने,
हर इच्छापूर्ति करता है
माँ
की साड़ी, दादी की ऐनक, हर कमी को हँसके भरता है
हो
पूरे घर की जिम्मेदारी, या रिश्तों की दुनियादारी
परिवार की राह में जो आए, उस पर्वत पर भी ये भारी
जूता
उसका काटे चाहे, मोजों से
अँगूठा निकलता है।
कुर्ते में कितने छेद सही
पर, पिता नहीं उफ़ करता है।
कंधों
पर अपने बैठा कर, सारा ये
जगत दिखलाते हैं
जितना
ख़ुद भी न सीख सके, उसके आगे
सिखलाते हैं
छाती
इनकी तब फूलती
है, बच्चे जब उन्नति करते हैं
काँधे
से उतरकर नीचे जब, जीवन में
खूब निखरते हैं
अपने
सामर्थ्य से आगे बढ़, उम्मीदों
की खरीदी करता है
डगर
में हों कितने भी शूल पर, पिता नहीं उफ़ करता है।
क्यों
नहीं कभी ये कहते हैं, अपने मन की सारी बातें
क्यों
नहीं कभी बतलाते हैं, कितना ये हम सबको चाहें
माँ
की आँखें नम देखी हैं, पर इनकी आँखें बस रूखी हैं
कई
बार यही इक छाप बनी, की इनकी
भावना सूखी हैं
कोमल-सा
हृदय होते
भी हुए, हर पल चट्टान-सा रहता है
हो
जाए मन कितना घायल पर, पिता नहीं उफ़ करता है।
आ जाओ
मिलकर आज इन्हें, हम गले
लगा इक काम करें
चूम
लें इनके हाथों को और छूकर पैर प्रणाम करें
जब
सीने से इन्हें लगाओगे, थोड़ा-सा ये चकराएँगे
थोड़े
से होंगे भाव विह्वल, थोड़ी सख्ती दिखलाएँगे
फिर
चोरी-चोरी आँखों से, एक बूँद
ओस की हरता है
भावुक
मन की आँखें दर्पण पर, पिता नहीं उफ़ करता है
-0-
76 Chelsea Crescent, Bradford,
L3Z0J7
(कनाडा)
पीयूष जी बहुत उत्तम कविता है। बधाई। सविता अग्रवाल “ सवि”
ReplyDeleteआपका अनेकानेक धन्यवाद सविता जी। 🙏🙏
Deleteपरिवार के लिए पिता के समर्पण,संघर्ष और भावाकुलता की सुंदर कविता।बधाई पीयूष जी
ReplyDeleteआपके हृदय को मेरी कविता ने छुआ मेरा सौभाग्य। 🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर कविता! पिता के रूप का यथार्थ चित्रण!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
आपको अनेकानेक धन्यवाद। पिता की रूप कितना प्यारा। 🙏🙏
Deleteअति उत्तम कविता,भावपूर्ण। हार्दिक बधाई सर।
ReplyDeleteमेरी कविता आपको अच्छी लगी मेरा सौभाग्य 🙏🙏
Deleteउत्तम भावपूर्ण अभिव्यक्ति। भावुक मन की आँखें दर्पण, पर उफ़ नहीं करता है। बहुत सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteआपने समय निकाल कर मेरी कविता को पढ़ा मेरा सौभाग्य। 🙏🙏
Deleteसुंदर कविता
ReplyDeleteअनेकों धन्यवाद आपका
Deleteपिता के त्याग, समर्पण का सुंदर चित्रण।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय 💐🌷🌹
सहज साहित्य परिवार में आपका स्वागत है।
सादर
आपको आकाश भर धन्यवाद। 🙏🙏
Deleteबहुत उम्दा भावपूर्ण रचना...बहुत-बहुत बधाई पीयूष जी।
ReplyDeleteआपका अनेकानेक धन्यवाद। 🙏🙏
Deleteसदाबहार रचना! बधाई पीयूष जी।
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏🙏
Deleteबहुत सुन्दर कविता है, मेरी बधाई पीयूष जी को
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