2-पर्वतों
की तंद्रा- सॉनेट अनिमा दास
तरल तंद्रा बह गई थी,पर्वतों से.. सिक्त हुआ था वन
रुधिर झर गया था वक्ष से.. रिक्त हुआ था यह
मन।
नदी हुई थी चंचला.. समुद्र से संगम की थी
व्यग्रता
किंतु नैश्य द्वीप में सहस्र उष्ण कामनाओं
की थी आर्द्रता।
स्वरित हो रही थी कदम्ब कुंज में कृष्ण वर्णा कादंबरी
ऊषा के पूर्व हो रहा था ध्वनित क्रंदन, थी सुप्त विभावरी ।
मंथर था समीरण...मुक्त हो चुका था धरणी का
केश
किंतु अब भी मौन देह में था ग्लानि का अपूर्ण
क्लेश।
मृदु भाव में तीक्ष्ण पीड़ा का चुम्बन.. अतीत
से कहा,
"स्मृति एक नहीं..अनेक हैं। कैसे कहूँ क्या -क्या
है सहा!"
निरुत्तर अतीत हुआ अदृश्य.. वर्तमान के अंतर्जाल
में
अंतरिक्षीय ध्वनि में हुआ विलीन शेष हुआ काल
में।
तरल तंद्रा बह गई थी पर्वतों से... रक्तिम
ऊषा थी आई
मालविका की काया शिशिर बूँद लिए मंद- मंद
लहराई।
-0-अनिमा दास हिंदी सॉनेटियर,कटक, ओड़िशा
दोनों रचनाकारों की रचनाएँ बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।
ReplyDeleteवे मुस्काए/ ओट में सभी/ प्रपंच छुपाए ••••वाह ,विश्वव्यापी सत्य को उदघाटित करती रचना और प्रकति के भाव बोध से गंभीर चिंतन खोजता अनिमा दास जी का साॅनेट , सहज साहित्य को अच्छा साहित्य पढ़वाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ। दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनायें
ReplyDeleteवाह्ह्ह !!सर अद्भुत सृजन...शब्दों में छुपा सत्य 🌹🙏नमन आपकी लेखनी को 🙏💐
ReplyDeleteसत्य का उद्घाटन करती रचनाएँ काम्बोज भैया की।अनिमा दास जी का साॅनेट बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई आप दोनो रचनाकारों को।
ReplyDeleteसमसामयिक ..... दोनों ही रचनाएँ बेहतरीन
ReplyDeleteगुरुवर एवं अनिमा जी को बधाई
बहुत सुन्दर क्षणिकाओं का सृजन । बधाई हिमांशु भाई ।अणिमा दास की साॅनेट बहुत उम्दा ।बधाई दोनों कवि मनों को 💐💐
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएँ और बेहतरीन सॉनेट।
ReplyDeleteआदरणीय गुरुवर व आदरणीया अनिमा जी को हार्दिक बधाई।
सादर
वाह!! दोनों ही रचनाएँ बहुत सुंदर लेकिन यह पंक्तियाँ खासतौत से अत्यंत प्रभावशाली... संभावनाएँ रौंदीं.... और मुस्कानों की ओट में प्रपंच छुपाए
ReplyDeleteमंजु मिश्रा
www.manukavya.wordpress.com
बहुत सुंदर क्षणिकाएँ और सॉनेट, काम्बोज भाई साहब और अनिमा जी का घन्यवाद!
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएँ
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएं, हार्दिक बधाई।--परमजीत कौर 'रीत'प
ReplyDeleteमन को चुभती सत्य और सामयिक क्षणिकाएँ, बधाई काम्बोज भाई. सुन्दर रचना के लिए अनिमा जी को बधाई.
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज जी की पैनी क्षणिकाएँ सीधे दिल को छूती हैं, बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteअनिमा जी की रचना भी बहुत पसंद आई, बहुत बधाई