1-कुण्डलिया
डॉ. उपमा शर्मा
1
तुमसे ही ये मन जुड़ा, दूर रहो या पास।
सुधियाँ देती हैं मुझे
,मोहक मधुर
सुहास।।
मोहक मधुर सुहास, साथ एक पल न
छूटे ।
रब से ये अरदास,न बंधन अपना टूटे॥
मैं राधा तुम श्याम,कि मितवा, सात जनम से।
बने तुम मनमीत, दिलों के बंधन
तुमसे।
2
तरु जब काटे थे नहीं, ताल-कूप अंबार।
नीर कहाँ से अब मिले, कर लो सोच-विचार।
कर लो सोच विचार, सूखती ताल-तलैया।
पर्वत बने मैदान, न लें फिर मेघ
बलैया।
धरती होती क्लांत, न बरसेगा बादल
तब।
सूखे चारों मास, काटते तुम ये
तरु जब।।
-0-
2-सपने-2
भीकम सिंह
बीते दिनों की
यादों के
कई सपने
मेरी आँखों में
छुपकर
बड़े हुए हैं ।
धड़कनों पे
मँड़राते रहे
आषाढ़ से आषाढ़
सावन के
बीचो-बीच
खड़े हुए हैं ।
जुगनू भर गए
अबके अनाप- शनाप
इसलिए
फागुन में
मिलने की जिद पे
अड़े हुए हैं ।
बीते दिनों की
यादों के
कई सपने।
-0-
मनभावन कुंडलियाँ और 'आँखों मे छुपकर बड़े हुए' अति सुंदर सपने!
ReplyDeleteउपमा जी और भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई!
अत्यंत सुंदर..सृजन ... 👌👌🌹🙏आप दोनों को हार्दिक बधाई 🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐
ReplyDeleteअति सुंदर...उपमा जी और भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुन्दर सर्जन के लिए उपमा जी और भीकम सिंह जी को बहुत बधाई.
ReplyDeleteबहुत उम्दा, दोनों ही रचना बहुत सुंदर । हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteमनोहारी रचनाओं के लिए आप दोनों को बहुत बधाई
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