1-रश्मि विभा त्रिपाठी
मैं गीली माटी थी
गुरु तुमने दिया आकार
शिक्षा के साँचे में ढाला
और गढ़े सुन्दर
संस्कार
बियाबान के झुरमुट में
मैं व्यर्थ पड़ी एक खोखल थी
पर वसंत की आशा भी
मुझमें अतिशय प्रबल थी
तुम कृष्ण- से
कृपा दृष्टि पा
मैं खोखल से वेणु हुई
कंचन हो जाए निश्चय ही
गुरु - चरणों ने जो
रेणु छुई
मुझे ज्ञान का पाठ पढ़ा
अतुलित साफल्य दिया है
कभी क्रोध कर बोध जगाया
औ कभी निरा वात्सल्य दिया है
मैं अबोध और महामूढ़
अब हल करती हूँ जो प्रश्न गूढ़
यह केवल तुम्हारा ही दिग्दर्शन है
तुम्हारी शिक्षा है तुम्हारा दिव्य दर्शन है
मैं कृतज्ञ हूँ जो अमूल्य ऋण तुमसे पाया है
गुरु दक्षिणा में शीश तुम्हारे चरणों में नवाया है।
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2- मधुशाला छंद
मेघा राठी
मेरे नैनों सम्मुख लाई , जीवन का ताना -बाना
प्रथम नमन है माँ को मेरा, सीखा तुमसे मुस्काना
डगमग-डगमग चलते मेरे, क़दमों को तुमने थामा
बोले पापा गुड़िया मेरी, तुम आगे बढ़ती जाना
सहज नेह के साथ ज्ञान दें, गुरु वही कहलाते हैं
जिनकी शीतल छाया पाके , पुष्प नहीं मुरझाते हैं
कभी जिंदगी कभी किताबें, गुरु बनी धरती सारी
सभी गुरुजन के चरणों में, हम ये शीश झुकाते हैं।
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सुंदर कविता व छंद। बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं हेतु रश्मि जी और मेघा जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसहज साहित्य में मेरी कविता को स्थान देने हेतु आदरणीय सम्पादक जी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआदरणीया कविता दीदी का एवं अनिता जी का हृदय तल से आभार।
सादर