राशिद अमीन नदवी
के किरदार को सजाती है सँवारती है। दुनिया में मौजूद तमाम चीज़ें ख़र्च करने से घटती जाती हैं ,मगर तालीम बाँटने से बढ़ती जाती है, जितना इंसान किसी को सिखाता है ,कुछ बताता है उतना ही उसके इल्म और जानकारियों में तरक़्क़ी और उन्नति होती जाती है,यह बस तालीम ही का करिश्मा है।
धार्मिक दृष्टिकोण से भी तालीम की अहमियत है,इल्म
को हर इंसान के लिए ज़रूरी क़रार दिया गया। यह दौर टेक्नोलॉजी की तरक़्क़ी का दौर है,
जिसमें क़दम क़दम पर मुक़ाबले हैं ,प्रतिस्पर्धाओं
और चुनौतियों का जाल है, इसीलिए इस जाल को तोड़ने के लिए अपनी
सोई हुई सलाहियतों को जगाने की ज़रूरत है ,और अपनी क़ाबिलियतों
को विशेष परवान चढ़ाने की ज़रूरत है। यह सब शिक्षा प्राप्ति से
ही संभव है। जब साइंस और कंप्यूटर का दौर हो, तो उसमें आप हाथ पर हाथ धरे कल के इंतज़ार में नहीं बैठ सकते,आपको जो करना है आज करना है,वरना मंज़िल दूर होती
जाएगी , रास्ते और कठिन, डगर और
मुश्किल होती जाएगी।
इसके साथ साथ मौजूदा हालात के परिदृश्य में इंसान की इंसानियत से दोस्ती
के लिए नैतिक शिक्षा भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस शिक्षा के
कारण ही ख़ुदा से लगाव और इंसान से प्रेम, और अपने फ़र्ज़ और
कर्तव्यों में ईमानदारी, ज़िम्मेदारियों में निस्वार्थता,
जीवन में सेवा का भाव और , इंसानों के प्रति
सहानुभूति जागृत होती है। इसीलिए नैतिक शिक्षा की ज़रूरत भी आज की अहम ज़रूरतों में
से हैं,नैतिक शिक्षा ही एक बेहतर और खुशहाल समाज का निर्माण
कर सकती है। शिक्षा का प्राथमिक लक्ष्य हमेशा व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित करना होता है। इसलिए तालीम के लिए
ऐसे शिक्षकों की ज़रूरत है, जो पुस्तकें पढ़ाने और क्लास लेने
के अलावा ,अपनी ज़िम्मेदारियों का भी अहसास रखता हो,उसको किसी एक इंसान को बेहतर बनाने के साथ साथ पूरे समाज को बेहतर बनाने
की फ़िक्र हो।जब यह भाव किसी उस्ताज़ के अंदर पैदा होगा तो एक स्वस्थ समाज उभरकर
सामने आएगा और शिक्षा को एक नई दिशा
मिलेगी।
विद्यार्थियों को भी यह
समझना होगा कि उनका लक्ष्य सिर्फ़ परीक्षा उत्तीर्ण करना ही न हो, बल्कि
वह शिक्षा के माध्यम से अपने आस पास के माहौल को बेहतर बनाने के लिए फ़िक्रमंद हों,एक स्वस्थ समाज की नींव तभी रखी जा सकती है, जब समाज
सुधारकों के दिलों में बेलौस जज़्बा हो ,जो किसी ओहदे और
चौधराहट के लालची न हों। विद्यार्थी और शिक्षक ही इस काम को बख़ूबी कर सकते हैं, क्योंकि उनके पास
इल्म का जौहर है।
शिक्षक जिस तरह अपने काम को क्लासरूम में पूरा करता है,
उसी तरह विद्यार्थी अपने
कर्तव्यों का निर्वहन अपने समाज में करें तो समाज के अंदर शिक्षा के प्रति नई
जागरूकता देखने को मिलेगी,क्योंकि तालीम ही इंसान को अदब
सिखाती है,तालीम ही तहज़ीब सिखाती है,
तालीम ही सही -ग़लत में तमीज़ सिखाती है,अच्छाई
और बुराई में फ़र्क़ करना सिखाती है। ,तालीम ही से,बड़े बड़े शिक्षाविदों ने ही शानदार और बाकमाल यूनिवर्सिटीज की बुनियाद रखी
जिनसे लाखों बच्चों के भविष्य सँवारे जाते हैं,इसलिए तालीम ही वक़्त की ज़रूरत है,और यह ज़रूरत हमेशा
बाक़ी रहेगी,ज़माने की रफ़्तार के साथ साथ इसकी बहुत ज़रूरत महसूस की जाती रहेगी,क्योंकि तालीम का दायरा
कभी सिमटता नहीं है , बल्कि सिर्फ़ बढ़ता है और बढ़ता जाता है।।
इसीलिए विद्यार्थी और शिक्षक के साथ- साथ अभिभावकों को भी इस तरफ़ ध्यान देने की
आवश्यकता है कि वह अपने बच्चों पर नज़र रखें,गाहे बगाहे उनकी
तालीम का जायज़ा लेते रहें,स्कूल या कॉलेज जाकर उनकी रिपोर्ट
लें और पता करें कहीं आपका नूर ए नज़र अपने और अपने परिवार और समाज के ख़्वाबों को
चकनाचूर तो नहीं कर रहा है।
बड़ी
दुख भरी बात है कि परीक्षा में नक़ल की कसरत ने हमारे पूरे तालीमी सिस्टम को दीमक की तरह खोखला और
बच्चों के भविष्य को अंधकारमय बना दिया
है।
वक़्त रहते हम जागरूक नहीं हुए, तो हमारा सामाजिक ताना- बाना बिखर जाएगा और एक
बिखरा हुआ समाज ज़िन्दगियों को बिखेर तो सकता है, सँवार नहीं
सकता।
इस के लिए ज़रूरत है हमारी शिक्षा प्रणाली में
वह जान हो वह ताक़त हो और वह ढाँचा हो, जिससे मुस्तक़बिल सँवरते हों, ऐसा न हो कि स्कूल या कॉलेज से पढ़ने के बाद सिर्फ़ वह परेशान हाल होकर दर- बदर ठोकरें खाते रहें और उनके पास ज़िंदगी को बेहतर बनाने का ठोस सामान न हो,इसके लिए
वोकेशनल एजुकेशन की जितनी ज़रूरत है ,उतनी ही टीचर्स को क्लास
में भविष्य की ज़रूरतों को सामने रखकर उनको तालीम देने की भी
ज़रूरत है।
हम खुद अपने बच्चों को अपने तौर पर तैयार करें
कि सिर्फ़ सिलेबस का पढ़ लेना ही ज़िंदगी का हासिल नहीं होता बल्कि ज़िंदगी जो शुरु
होती है वह फुरसतों और फ़रागतों के बाद शुरू होती है।
इस के लिए बेहतर तालीम,बेहतर
रहनुमाई व गाइडेंस और बेहतर काउंसलिंग की ज़रूरत है जो जगह जगह पर अलग अलग इलाक़ों
में बच्चों को दी जाए ताकि उन्हें अपना भविष्य रौशन नज़र आए
और वे किसी भी तरह हीन भावना का शिकार न हों ,और अपनी उम्मीदों को पंख देकर अपने ख़्वाबों को ताबीर दे सकें।
-0-राशिद अमीन नदवी,गाँव मलाई,ज़िला
पलवल,(हरियाणा) 121103
शिक्षा की बेहतरीन व्याख्या करता लेख,राशिद अमीन नदवी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
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