1-शशि पाधा
हवा कुछ चंचला- सी है
न जाने कौन आया है
लहरती कुंतला- सी है
इसे किसने लुभाया है ?
अभी तो गुनगुनी- सी थी
ज़रा फिर शीत हो गई
नहाई धूप में जीभर
वासन्ती पीत हो
गई
सलोनी श्यामला -सी है
रुपहला रूप पाया है ।
तरु शिखरों पे जा बैठी
उतर फिर डाल पर झूली
अल्हड यौवना कैसी
अँगना द्वार ही भूली
उलझी मेखला- सी है
किसी योगी की माया है ।
उड़ाती खुशबूएँ इत–उत
बनी है इत्र की दूती
कभी बगिया में इतराए
कभी जा आसमाँ छूती
सुरीली कोकिला सी है
कहीं मधुमास आया है ।
रंगाई लहरिया चुनरी
पहने सातरंग चोली
छेड़े फाग होरी धुन
खेले फागुनी होली
रंगोली मंगला-सी है
इसे किसने सजाया है ।
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बहुत मनभावन कविता है शशि जी हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteअति सुंदर, शशि जी।
ReplyDeleteवाह ! क्या कहने, बहुत ही सुंदर! धन्यवाद शशीजी!💐
ReplyDeleteवाह! बहुत ही खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर-
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
बहुत सुंदर रचना...हार्दिक बधाई शशि जी
ReplyDeleteशशि जी आपने वसंत के स्वागत में साहित्य की सारी उपमाओं से एक नव वधू की तरह सजा दिया | अति रोचक और पठनीय रचना के लिए हार्दिक बधाई !- श्याम हिन्दी चेतना
ReplyDeleteवाह,बहुत मधुर,मनभावन कविता।शशि पाधा जी कोबहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता है. शशि पाधा जी को बधाई.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना, हार्दिक बधाई।
ReplyDelete-परमजीत कौर'रीत'
इस प्यारी सी कविता के लिए बहुत बधाई शशि जी
ReplyDeleteआदरणीय शशि जी आपकी की इस मनमोहक कविता में अलंकृत हो गई चंचला।
ReplyDeleteमेरी हार्दिक इच्छा रहेगी इन सुंदर छंदोबद्ध शब्दों को आपकी आवाज़ में सुनने की।
अति सुन्दर सृजन, हार्दिक बधाई आद. दीदी।
ReplyDeleteरंगोली मंगला सी है.... वाह वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना। फागोत्सव सा ही हर मास रहे!