1-कवि जो कुछ लिखता है
शिवानन्द सहयोगी
कवि जो कुछ लिखता है, वह
भाषा की सम्पति है।
मुँह से निकले हर अक्षर की
कोमल काया है,
रचनाओं के उठते पुल का
मंथन पाया है,
पीड़ा की उमड़ी लहरों की
भावित पंगति है ।
भूली बिसरी यादों की छत
ईंट सुहानी है,
शब्दों के संवादों की यह
नई कहानी है,
यह सामाजिक
घटनाक्रम की
छाया सप्रति है ।
आसमान का पूर्व क्षितिज है
सूरज का रथ है,
भावों की यात्राओं की वह
पगडण्डी, पथ है,
ध्वनि-तुरही के नसतरंग की,
स्नेहिल संगति है ।
शब्दावलियों के गमलों का
घेरा, यह थाला,
अनुभव के अनुषंगों की है,
गुथी हुई माला,
वाणी के लय ताल छंद की,
अनुपद दंपती है ।
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2-लबों पे फूल ( ग़ज़ल)
[ ( ग़ज़ल) से पूर्व दिए गए शीर्षक को क्लिक करके आप इस ग़ज़ल को सुन सकते हैं 'लबों पे फूल लिंक को
मेघा राठी
लबों पे फूल मुहब्बत के वो खिलाता है
ग़ज़ल समझ के मुझे रोज़ गुनगुनाता है
मिलूं जो उससे महक जाती हैं फ़िज़ाएँ भी
वो मुझसे मिलता है तो खुशबुएँ लुटाता है
अंधेरे रास नहीं आते हिज्र के उसको
चिराग इसलिए वो वस्ल के जलाता है
शराब हो गई हैं मिलके उससे सांसें अब
वो घूंट - घूंट करके मुझे पीता जाता है
खमोश लब हों मगर गुफ़्तगू भी होती रहे
जब इश्क होता है तब ये हुनर भी आता है
मेघा राठी, ई -2, पंजाबी बाग, रायसेन रोड भोपाल, म. प्र - 462023
3-अँधेरे मुझसे भय खाने लगे
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
भोर के सूर्य की
मैंने जब-जब अभिवंदना की
तब-तब आशीष-स्वरूप
मेरी झोली में
आ गिरीं
कुछ स्वर्णिम-रश्मियाँ
गोद हुई उजली, निखर गई
रौशनी कण-कण में बिखर गई
दिन जगमगाता हुआ
प्रकाश-गीत गाता हुआ
झूमा औ नाचा
यकायक
संध्या-प्रस्थान पर
तम से भय खाता हुआ
मन थर्राता हुआ
और फिर
मेरे अंतस् में उगा एक सूर्य
शनैः-शनैः असंख्य रश्मिपुंज
खिलखिलाने लगे हैं
अँधेरे अब मुझसे भय खाने लगे हैं।
-0-
4-प्रीति
अग्रवाल
भूल जाने की आदत
गज़ब ढा गई.....
तुम तो याद हो,
फिर सितम क्यों नहीं!
2.
अभी भी तुम में,
'तुम्हीं' है बहुत.....
बात यूँ न बनेगी,
हम,
'हम' कैसे होंगे!
3.
बेकार की बहस है,
बेकार है दलील...
कानून बिक चुका है,
बेकार है अपील!
4.
मुस्कुराती रहूँ
और कुछ न कहूँ....
यूँ कब तक लबों को,
भला मैं सिलूँ....!
5.
गलियाँ इश्क की, हैं
सकरी बहुत..…
'तेरे' 'मेरे' की गुंजाइश,
इनमें नहीं!
6.
कभी रूठें हम,
कोई हमको मनाए...
छोटी सी हसरत,
जनम बीता जाए......!
7.
तड़प रहा है दिल,
दीदार को तेरे.....
जाने,
कितना इंतज़ार,
मुक्कदर में है मेरे....।
8.
महब्बत करने वाले दिल,
बहुत ही खास होते हैं....
चाहे,
फासले मीलों के,
फिर भी पास होते हैं...!
9.
धीमें धीमें सुलगते हैं
सीने में जो.....
अधूरी ख्वाहिशों, के
अंगार हैं.....!
10.
प्यार करना तो आता है
सब को मगर...
निभाने के शौकीन,
कुछ एक हैं....!
11.
जीने के बहाने
लाखों थे,
जीना तुझको
आया ही नहीं......
बस बहना था
दरिया की तरह,
तू वो भी क्यों ,
कर पाया नहीं.....?
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एक से बढ़कर एक रचनाएँ। आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचनाएँ... आप सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर मनभावन रचनाएँ। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteभावपूर्ण सुंदर कविताओं के लिए शिवानन्द जी और विभा जी को बधाई!
ReplyDeleteमेघा जी की ग़ज़ल बेहतरीन, और गायन भी बहुत सुंदर, आपको भी बधाई!
धन्यवाद आदरणीय काम्बोज भाई साहब, आपकी अनुकम्पा से सब से मिलना हो जाता है, बहुत बहुत आभार!!
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएं, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण कविताएँ आदरणीय शिवानन्द जी एवं रश्मि जी!
ReplyDeleteख़ूबसूरत ग़ज़ल मेघा जी!
हमेशा की तरह भावपूर्ण क्षणिकाएँ प्रीति जी!
आप सभी को बहुत-बहुत बधाई!
~सादर
अनिता ललित
अनिता जी, रीत जी, सुदर्शन दीदी जी, कृष्णा जी, कविता जी....आप सभी पथ के साथियों का हार्दिक आभार!
ReplyDeleteसादर
प्रीति अग्रवाल
सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर. मेघा जी की आवाज़ बहुत मधुर है. आप सभी को हार्दिक बधाई.
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवँ भावपूर्ण रचनाएँ...आप सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
आदरणीय शिवानंद सहयोगी जी प्रीति अग्रवाल जी एवं मेघा राठी को सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमेरी रचना पसंद करने हेतु आपका सभी का बहुत-बहुत आभार।
सादर-
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
अलग अलग मनोभावों को व्यक्त करती उम्दा रचनाओं के लिए आप सभी को बहुत बधाई
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