1-इस दुनिया में-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
इस दुनिया में अपने मन
का
भला किसे आकाश मिला,
सीता हो या राम सभी को
सदा-सदा वनवास मिला।
जीवन बीता हमने हरदम
सबके पथ के शूल चुने
हमको प्यार करेगा कोई
हमने सौ-सौ सपन बुने ।
चूमे जब-जब पलक पनीले
इन अधरों की प्यास बुझे
क्रूर कपट -भरे हाथों से
तभी हमको संन्यास मिला।
तूफ़ानों के दौर झेलते
सोचा था कुछ पाएँगे
मनमीत को गले लगाकर
सब दु:ख दर्द बताएँगे।
यह दुनिया है अंधी- बहरी
सुने न देखे यह धड़कन
आलिंगन में जब-जब बाँधा
हमको छल का पाश मिला।
अच्छे कामों का फल जग
में
सदा नहीं अच्छा होता
जो घर के भीतर तक पहुँचा
वह विषबेल सदा बोता।
जिस पर हमें रहा भरोसा
वो आस्तीन का साँप बना
मन -प्राणों से साथ
रहा जो
उसको भी संत्रास मिला।
-0
कई बार मन में
है आता यही,
मुझे कुछ समझ में
क्यों आता नहीं...?
खुलकर यहाँ लोग
मिलते नहीं,
न हँसते ही हैं
और हँसाते नहीं...?
मुखोटों के पीछे
छुपे है सभी,
क्यों, झूठ से दामन
छुड़ाते नहीं....!
मंज़िलों पर हैं
निगाहें टिकी,
क्यों, मील का पत्थर
सराहते नहीं....?
हार जीत का
ये अजब खेल है,
दौड़े फिरते हैं सब
ठहर पाते नहीं...!
मन में आता है
बस अब,
यही बार बार,
मैं यहाँ पर तो हूँ
पर यहाँ की नहीं....
कहीं मैं कोई
परी तो नहीं...?
कहीं मैं कोई.....
परी तो नहीं !!
-0-0
2. कविता- कहो न
चाँद की बाहों में
चाँदनी अलसाए,
भँवरे की गुंजन सुन
कलियाँ लजाएँ...।
सागर की लहरें भी
बलखाती सी हैं,
तरु पर लताएँ भी
मदमाती सी हैं...।
नभ में, पतंग भी
बहकी सी डोलें,
पुरवई चुपके से
कानों में बोले...।
फूलों पर, तितली की
हल्की सी चुम्बन,
बगिया के मन में भी
कौंधे है स्पंदन...!
तारों की टिमटिम
शरारत भरी है,
किसी की तो साज़िश
कहीं चल रही है...!
सखा मेरे, मुझको
यही लग रहा है,
बेला मिलन की
करीब आ रही है...!
कहो न,
तुम्हें भी
यही लग रहा है,
बेला मिलन की
बस, आ ही गई है....!!
बहुत सुंदर भावो से परिपूर्ण कविता है भाईसाहब । इस दुनिया में भला किसे अपने मन का आकाश मिला..... हार्दिक बधाई। प्रिय प्रीति की भी अत्यधिक ख़ूबसूरत कविताएँ हैं.. फूलों पर तितलियों की हल्की सी चुम्बन ...बहुत सुंदर दृश्य दर्शाती कविता है । हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका सविता जी, बहुत खुशी हुई कि आपको पसन्द आईं!
Deleteइस दुनिया मे अपने मन का भला किसे आकाश मिला...जीवन का सत्य दर्शाती सुंदर भावपूर्ण कविता, आदरणीय आपको अनेकों बधाई!
ReplyDeleteमेरी कविताओं को इस सुंदर मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार!
भावपूर्ण सुंदर रचनाओं के लिए आदरणीय काम्बोज जी एवं प्रीति जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय!!
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार आदरणीय!
Deleteआदरणीय हिमांशु भैया जी की कविता कटु यथार्थ को दर्शाती, कहीं भीतर तक उतर गई! आपको एवं आपकी लेखनी को सादर नमन!
ReplyDeleteप्रीति जी की दोनों कविताएँ भी अलग रूप लिए हुए बहुत सुंदर! आपको हार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
बहुत खुशी हुई कि आपको पसन्द आईं, आभार अनिता जी!
Deleteजीवन की सच्चाई पिरोई कम्बोज जी ने।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी धन्यवाद!
Deleteइस दुनिया में अपने मन का
ReplyDeleteभला किसे आकाश मिला,।जीवन का सत्य दर्शाती भावपूर्ण,मर्मस्पर्शी कविता ।हार्दिक बधाई
प्रीति जी दोनों कविताएँ बहुत सुंदर हैं। आपको बहुत बहुत बधाई।
आपका आभार दी!!
Deleteजीवन की विडम्बनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति है आदरणीय काम्बोज भैया की कविता।प्रीति जी की बहुत सुंदर कविताएँ।बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद सुरँगमा जी!
Deleteजीवन के कटु सत्य की उम्दा अभिव्यक्ति करती भाई काम्बोज जी की रचना।
ReplyDeleteप्रीति जी की दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर। आप दोनों को हार्दिक बधाई।
आपका आभार कृष्णा जी!!
Deleteहृदयस्पर्शी यथार्थ की धरातल पर लिखा हुआ सृजन कम्बोज भैया , बहुत बहुत बधाई एवं नमन आपको 🙏🙏
ReplyDeleteप्रीति जी के दोनों सृजन बेहद खूबसूरत💐💐 अनेक बधाई आपको
आपके स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद गुंजन जी!
Deleteआभार आदरणीय!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत और भावपूर्ण सृजन भैया जी ।
ReplyDeleteप्रीति जी, दोनों रचनाएँ सरस और मनभावन।
आप दोनों को हार्दिक बधाई!
आप सबकी टिप्पणी ने जो मान बढ़ाया, उसके लिए कृतज्ञ हूँ>
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएं। हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteइस दुनिया में अपने मन का / भला किसे आकाश मिला। भावपूर्ण,मर्मस्पर्शी गीत भैया। नमन आपको।
ReplyDeleteप्रीति जी दोनों कविताएँ बहुत सुंदर हैं। आपको बहुत बहुत बधाई।
जीवन की कड़वी सच्चाई लिखी है काम्बोज भाई ने. इस उत्कृष्ट रचना में हमारे मन के भाव भी शामिल हैं. बहुतों का जीवन ऐसे ही कष्ट में बीतता है जिससे घर में होते हुए भी वनवास और संन्यास मिल जाता है.
ReplyDeleteप्रीति जी की दोनों रचना बहुत सुन्दर, बधाई.