1- नयन तेरे दर्शन को तरसें- डॉ. अमिता कौंडल
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें
कब आएगा तू रे,नयन तेरे दर्शन को तरसें
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें
मैं दूध भी लाई, माखन भी लायी रे .....2
कब भोग लगाएगा, नयन तेरे दर्शन को तरसे
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें…2
कब आएगा तूँ रे,नयन तेरे दर्शन को तरसें…2
गोपियाँ भी आईं झूले भी डाले रे .....2
कब रास रचाएगा, नयन तेरे दर्शन को तरसे
गोविन्दा....2
मटकी लेकर के, मैं यमुना तीरे बैठी रे .....2
कब कंकर मारेगा, नयन तेरे दर्शन को तरसे
गोविन्दा .....2
भोर भई, फिर साँझ ढ़ली अब रैन हुई है रे .....2
कब मुरली बजाएगा नयन तेरे दर्शन को तरसें
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें…2
कब आएगा तू रे,नयन तेरे दर्शन को तरसें---2
गोविंदा गोविंदा, नयन तेरे दर्शन को तरसें---2
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तीन-मुक्तक
1
भोर हुए जो सूरज निकला, उसको तो ढल जाना है।
माटी की नौका ले निकले,उसको तो गल जाना है।।
धूल- बवंडर आँधी-पानी, सब तो पथ में आएँगे।
इनसे होकर चलते जाना, हमने मन में ठाना है।।
2
हम ना होंगे जब आँगन में,तब सन्नाटा डोलेगा।
चुप्पी में कितनी बातें हैं, राज़ नहीं वह
खोलेगा।
सिर्फ़ दुआएँ पास रही हैं,किसने पाया -खोया है।
यह तो जाने ऊपर वाला,पर वह कभी न बोलेगा।।
3
शान से आगे बढ़ो तुम
कि हर कल तुम्हारा है
जाह्नवी तुम ही हो मुझमें जो जल तुम्हारा है।
पथ तुम्हारा कंटकों का संग में चलना
मुझे
सुमन खिलाने हैं जहाँ तक आँचल तुम्हारा है।
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2-याद आया- रामेश्वर
काम्बोज 'हिमांशु '
चुभा जो नश्तर याद
आया
टूटा हुआ दर याद आया
याद आया चहकता बच्चा
छूटा हुआ घर याद आया
रात भर नींद न आई
हमें
हर दफ़ा पत्थर याद आया
याद आए तुम, छल तुम्हारे
काँटों का सफर याद
आया
शब्द जहाँ खिले फूलों
जैसे
मुझे वह दफ्तर याद
आया
साया तक भटका रातों
में
मुझे हर मंज़र याद आया
अश्कों में डूब गई
रातें
जब
मुझे सागर याद आया
आँख खुली तो टूटे
सपने
छल भरा बिस्तर याद
आया
चाँद पर जीभर जो
थूकते
उन्हें कब यह डर याद
आया।
जब
गुनाह छुपाने को कभी
चलाया खंज़र याद आया
3- दूर सभी को जाना है- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु
'
जीवन बुदबुद जल का है
किसे भरोसा कल का है।
दूर सभी को जाना है
कुछ खोना कुछ पाना है।
दूर नगरिया जाएँगे
याद नहीं हम आएँगे।
मोह पाश जो पाया है
यह जन्मों की माया है।
जब तक साँसें जीना है
जीवन का रस पीना है।
-0-
4-रौशनी
मैं अँधेरा नहीं,रौशनी हूँ
तुम्हारी
हारो ना हिम्मत,तुम ज़िंदगी हमारी।
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कृष्ण-भक्ति की सुंदर अभिव्यक्ति । बधाई अमिता कौंडल जी।
ReplyDeleteआशान्वित करते मुक्तक, भावपूर्ण कविताएँ ।सकारात्मक सोच , प्रभावशाली सृजन को लिए बहुत बहुत बधाई भैया।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअमिता जी को सुंदर कृष्ण भजन के लिए बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteआदरणीय काम्बोज भाई साहब की भी सभी कविताएं भाव पूर्ण और सुंदर सन्देश लिए!...आपको भी बहुत बहुत बधाई!!
सभी रचनाएँ बहुत भावपूर्ण एवं सुंदर
ReplyDeleteअमिता जी एवं काम्बोज सर हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें
बहुत सुन्दर रचनाएँ ।आत्मिक बधाई स्वीकारें ।
ReplyDeleteसुंदर मुक्तक
ReplyDeleteसभी रचनाएँ बेहद सुन्दर, सार्थक और भावपूर्ण. अमिता जी और काम्बोज भाई को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएँ ....अमिता जी और भाई काम्बोज जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,भावपूर्ण तथा प्रभावशाली सृजन के लिए आदरणीय भैया जी और अमिता जी को हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं, आदरणीय भाईसाहब जी एवं आदरणीया जी।
ReplyDelete-परमजीत कौर'रीत'
जीवन का रस पीना है ... अहा अतिसुन्दर भावमय करता सृजन ... एक से बढ़कर एक रचनाओं के लिए बहुत बहुत बधाई आप सभी को।
ReplyDeleteमैं अँधेरा नहीं,रौशनी हूँ तुम्हारी
ReplyDeleteहारो ना हिम्मत,तुम ज़िंदगी हमारी।
कितनी हिम्मत बाँधती हैं ये पंक्तियाँ...अलग अलग मनोभावों को व्यक्त करती खूबसूरत रचनाओं के लिए आदरणीय काम्बोज जी को बहुत बधाई |
अमिता जी ने हम सब को भक्ति-रस में सराबोर कर दिया, उनको भी बहुत बधाई