पथ के साथी

Wednesday, June 21, 2017

प्यास और पानी के बीच

 


1-डॉ.कविता भट्ट

1

प्यास और पानी के बीच; है जो फासला-

यही है जिजीविषा- जीने का सिलसिला।

 भूख से रोटी की दूरी तय करने में अक्सर-

व्यक्ति तय कर लेता है पीढ़ियों का सर।

 वह भटकता है गाँव से नगर औ महानगर;

प्यास-भूख भीरु को भी बना देती; निडर।

 माप सकता है वह कई लोकों को डग भर-

वामन के जैसे ही नन्हे; किन्तु दृढ़ पग-धर।

 प्रसंग में न वामन है; न ही बली की मबूरी;

है केवल प्यास-भूख से पानी-रोटी की दूरी।

2

आस जब जोगन हो जाए।

कण्टकपथ यौवन हो जाए।

जहर मौन हो- मन पीता है;

पीड़ामय जीवन हो जाए।

 

पलक-द्वार जब वह न खोले।

पीर जिया की अश्रु न बोले।

तब यह समझो घट रीता है;

जीवन इसमें रस न घोले।

 

कठिन हो जब मन समझाना।

विकल जी की प्यास बुझाना।

मृत्यु सरल, कठिन है जीवन;

क्या साँस का आना-जाना?

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