1-उस पार की आवाज़
जैसे सिसकती हूँ मैं ,हर रोज़
यहाँ
क्या मेरा लिए भी कोई सिसकता वहाँ होगा ?
देखती होगी आज भी
वह हमारे भाव अपनी गहरी आँखों से
चाहती होगी स्पर्श
अपनी उस नन्ही- सी बूँद का जो
उसके आँसुओं का हिस्सा भी बन न सकी
व्याकुल होगी सुनने को
एक शब्द माँ जो वो सुन न सकी
जन्म तो दिया ,पर माँ कभी बन न सकी
तड़पता उसका भी हृदय वहाँ होगा
नहीं जानती की ज़्यादा बुरा क्या हुआ
उसका चला जाना या मेरा उसके बिना जीते जाना
एक महक का विलुप्त होना
या हवा का उसके बिना बहते जाना
नहीं जानती
कि कौन जानता था ,
जीवन के बाद ,जीवन में इतना दर्द होगा
हर साँस एक अपराध और हर हंसी पे एक क़र्ज़ होगा
के ढलक जाएँगे गालों पर
आँखों में ठहरा आँसू अब कहाँ होगा ?
है दर्द यहाँ भी, है दर्द वहाँ भी
क्या मेरा लिए भी कोई सिसकता वहाँ होगा ?
देखती होगी आज भी
वह हमारे भाव अपनी गहरी आँखों से
चाहती होगी स्पर्श
अपनी उस नन्ही- सी बूँद का जो
उसके आँसुओं का हिस्सा भी बन न सकी
व्याकुल होगी सुनने को
एक शब्द माँ जो वो सुन न सकी
जन्म तो दिया ,पर माँ कभी बन न सकी
तड़पता उसका भी हृदय वहाँ होगा
नहीं जानती की ज़्यादा बुरा क्या हुआ
उसका चला जाना या मेरा उसके बिना जीते जाना
एक महक का विलुप्त होना
या हवा का उसके बिना बहते जाना
नहीं जानती
कि कौन जानता था ,
जीवन के बाद ,जीवन में इतना दर्द होगा
हर साँस एक अपराध और हर हंसी पे एक क़र्ज़ होगा
के ढलक जाएँगे गालों पर
आँखों में ठहरा आँसू अब कहाँ होगा ?
है दर्द यहाँ भी, है दर्द वहाँ भी
इस जहान से अलग, नहीं
वो वो जहान होगा
मेरे लिए जरूर कोई सिसकता वहाँ होगा।
मेरे लिए जरूर कोई सिसकता वहाँ होगा।
-0-
2-किसी रोज...
मंजूषा मन
किसी रोज अलसुबह
जब खोलोगे तुम
अपने घर का दरवाजा,
अपनी साँसो में भर लेने
प्रकृति की ताजी हवा...
देखने भोर की साँवली- सी रौशनी...
जब चाह रहे होगे
दिन भर मुस्कुरा का
जीने की ऊर्जा...
तब...
तुम्हारे दरवाजे पर कोई
तुम्हारी एक झलक मात्र से
अपने मन मे
भर रहा होगा जीने की ऊर्जा,
तुम्हे छूकर आती हवा से
भर रहा होगा अपनी
उखड़ी -सी साँसों में ताज़गी,
तुम्हारे चेहरे की दिव्य चमक से
रौशन कर रहा होगा
मन का हर कोना....
किसी दिन अचानक ही
तुम मुझे अपने दरवाजे पर पाओगे,
या शायद
मन के दरवाजे पर...
-0-
3- डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर
1
छुआ जब फूल को
हँसने लगे
काँटें
नश्तर चुभोकर!!
2
हौले से
उदास मन
सैर करते वक्त
हो आया
माँ के पास!!
3
सहेज ली
कतरनें पुरानी
रिश्तों का बन गया
हिंडोला!!
4
मौन की
आहट
में
छिपे अहसास गहरे
कह रहे-
नयनाभिराम!!
5
मन के द्वार पर
दे रही
दस्तक
तुम्हारी कनखियाँ!!
6
ये झुर्रियाँ हैं
या मेरा
कटाक्ष
जो बींध रहा
मेरे कलेजे को!!
7
झिलमिलाते तारे
बढ़ा रहे
दोगुना
चाँद का सौंदर्य
मगर आज चाँद
खामोश- सा है !!
-0-
ऋचा मिश्रा जी ह्रदयस्पर्शी रचना मन को छू गई ।
ReplyDeleteमंजूषा जी भावपूर्ण रचना ।
पूर्णिमा जी उत्तम सृजन ।
आप सबको सफल सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।
Sabhi rachnakaron ne bahut achha bhavpurn likha hai. Meri sabhi ko shubhkamnayen.
ReplyDeleteऋचा जी दिल छूने वाली अभिव्यक्ति,बहुत खूब
ReplyDeleteमंजूषा जी,सुंदर पुकार
नमन आदरणीय रामेश्वर सर जी,मुझे स्थान दिया
आह कहूँ या वाह
ReplyDeleteबरसात का मौसम
और मन को छूती भिगोती सरसती ये सुंदर पीर पगी रचनाएँ।
बधाई शुभकामनाएँ आभार .......♥ से !!!!!!
बहुत ही भावपूर्ण और उत्कृष्ट रचनाएं आप सभी की।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ऋचा जी , मंजूषा जी एवं पूर्णिमा जी।
आप सभी इसी तरह साहित्य सृजन करती रहें।
बहुत ही भावपूर्ण और उत्कृष्ट रचनाएं आप सभी की।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ऋचा जी , मंजूषा जी एवं पूर्णिमा जी।
आप सभी इसी तरह साहित्य सृजन करती रहें।
बहुत उम्दा भावपूर्ण सभी रचनाएँ।
ReplyDeleteऋचा जी, मंजूषा जी, पूर्णिमा जी बहुत-बहुत बधाई।
बहुत भाव पूर्ण रचनायें अनूठे अन्दाज की अति उत्तम हैं । आप सभी रचनाना कारों को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteकविताओं में कहीं यादों से अनुप्राणित भाव हैं, कहीं इंतज़ार और मिलन की सम्भावना तो कहीं फूलों और काँटों का अनुभव और अभिव्यक्तियों का दर्पण कुल मिला कर विभिन्न भावों का संगम सराहनीय है,ऋचा,पूर्णिमा व मंजूषा जी बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
भावुक कर गई ऋचा जी की रचना. शायद उस पार कोई और जहां हो जहाँ सिसकता हो हमारे लिए कोई. भावपूर्ण रचना के लिए बधाई ऋचा जी.
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना, मंजूषा जी बधाई.
पूर्णिमा जी की सभी क्षणिकाएँ बहुत भावपूर्ण है, बधाई.
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत भावप्रवण और उम्दा रचनाएँ...हार्दिक बधाई आप लोगों को...|
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