पथ के साथी

Wednesday, September 16, 2020

1029-दो कविताएँ

 1-आलोचना

संध्या झा

 कौन कहता हैं आलोचनाएँ रोक सकती हैं ?


कौन कहता हैं आलोचनाएँ प्रगति पथ पर रोड़े जैसी हैं
?

कौन कहता हैं आलोचनाएँ बल नहीं देती ?

कौन कहता हैं आलोचनाएँ सबंल नहीं देती

 

आलोचनाएँ प्रगति पथ प्रशस्त करती हैं ।

आलोचनाएँ रक्त में बाल भरती हैं ।

आलोचना हैं तो क्या साहस से खड़ा हूँ मैं ?

आलोचना हैं तो क्या पर्वत से लड़ा हूँ मैं

 

आलोचनाएँ हमको सुमार्ग देती हैं ।

आलोचनाएँ हमको गंतव्य हजार देती हैं ।

आलोचनाएँ मझधार में पतवार जैसी हैं ।

आलोचनाएँ संघर्ष पथ पर फुहार जैसी हैं ।

 

आलोचना नहीं जिसकी समझो वो जीवित नहीं यहाँ ।

जो चाँद बन चमका उसकी हुई आलोचना यहाँ ।

आलोचनाओं की सीढ़ी बनाकर व्योम पर चढ़ूँगा मैं ।

चमकूँगा चाँद बनकर सबको रौशन करूँगा मैं ।

 

फिर आलोचनाओं से क्यों डरकर जिएँगे हम ?

आलोचनाओं को शीर्ष पर रख आगे बढ़ेगें हम ।।

 -0-

 2-भाग्यवाद संध्या झा

 

भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो

 सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे कि असमर्थ हो ।

 

ये कथिनाइयाँ तो है सखा, फिर तुम क्यो नतमस्तक रहो 

भाग्यवादिता की ये जो होड़ है, तुम्हे पीछे खींचे चहु ओर है

भाग्यवादिता अनुकरणीय नही, यह त्याज्य  और कायरों का शोर है।

 

 भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो 

सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे असमर्थ हो ।

 

 भाग्यवाद ,भाग्यवाद , क्यों करूँ  यह भाग्यवाद

इतनी शक्ति तुम में है, फिर भी कहो तुम भाग्यवाद

 भाग्यवादिता कुछ है नहीं, यह  मन का भ्रम जाल है

 नर हो तुम में साक्षात् नारायण का ही वास है

 फिर यह कैसी विडंबना जो तू पड़ा निढा हैं ।

 

भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो 

सशक्त  हो समर्थ हो तो क्यों लगे  असमर्थ हो ।

 

उपालम्भ की न सोचो तुम, धैर्य धर न बैठो तुम 

प्रगति पथ को तुम चुनो, निरंतर शोध तुम करो

वो शिखर है तुमको देखता ,सफलता खोजती तुमको

फिर है देरी किस बात की विलंब न क्षणभर करो 

स्वयं का ही नहीं संसार का उत्कर्ष हो।

 

 भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो 

सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे असमर्थ हो।

 

 आज भाग्यवादी बन जाओगे, कल क्या फिर पाओगे

 आने वाली पीढ़ी को यह  मुँह कैसे दिखलाओगे 

उठो ,गिरो ,गिरो, उठो, शिखर चूमकर रुको 

कठिनाइयाँ जब  टकराएँगी तो ठोकरें ही खाएँगी 

तुम्हारे समक्ष आने से पहले सौ बार वो सकुचाऐंएँ

 

भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो

 सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे असमर्थ हो ।।

-0-

33 comments:

  1. दोनों रचनाएं आशावादी और जीवन में नव ज्योति जगाने वाली हैं | आलोचना एक जीवन कसौटी है जो मनुष्य को नैतिक बल देती है | कायर पुरुष एक अधारा || दैव् दैव आलसी पुकारा|| तुलसीदास
    पढकर मन खुश हो गया क्योंकि मैं भी इसी प्रकार की सोच रखता हूँ |श्याम हिंदी चेतना

    ReplyDelete
  2. संध्या झा जी दोनों कविताएँ प्रेरक, सुंदर। बधाई आपको।

    ReplyDelete
  3. सुंदर रचनाये

    ReplyDelete
  4. savita51@yahoo.com16 September, 2020 08:06

    संध्या जी की दोनों ही कवितायें आशा का संचार करती हैं | विशेषकर "आलोचना" कविता की अंतिम पंक्ति ..."आलोचनाओं को शीर्ष पर रख आगे बढ़ेंगे हम "| अति उत्तम | हार्दिक बधाई स्वीकारें संध्या जी |

    ReplyDelete
  5. सुंदर भावपूर्ण रचनाओं के लिए बढई सन्ध्या जी!

    ReplyDelete
  6. सही कहा संध्या जी, जिन्हें अपने पर विश्वास होता है वे आलोचनाओं से घबरा कर अपना साहस नहीं खोते बल्कि दुगने आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते हैं। दोनों ही कविताएँ प्रेरणादायी हैं ।बहुत-बहुत बधाई आपको ।

    ReplyDelete
  7. सुंदर रचनाएं,हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  8. जीवन को प्रेरित करती प्रेरणादायी कविता!
    सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीया!
    सादर!

    ReplyDelete
  9. संध्या दोनों ही रचनाएं पाजिटिव सोच वाली हैं और रचनाकार की तरफ से आश्वस्त करती हैं कि हम अपना काम करें और दूसरों को उनका काम करने दें। इसी में हमारी बेहतरी है।

    ReplyDelete
  10. बेहद उत्साहवर्धक, आशावादी विचारों की अभिव्यक्ति की गई है कविता के माध्यम से । जिंदगी में एक सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाने को प्रेरित करती रचना ।खूबसूरत विचारों से जिंदगी में आशा की नूतन किरणें जगाने का उत्कृष्ट प्रयास । सुन्दर शब्दों का समावेश रचना की खूबसूरती में इजाफा करता है । सन्ध्या झा जी को इस कृति के लिए साधुवाद ।

    ReplyDelete
  11. आलोचनाओं को सीढ़ी बनाकर व्योम पर चढ़ने का सकारात्मक भाव ही प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है,साथ ही भाग्यवाद को नकार कर कर्मपथ पर चलकर लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग ही श्रेयस्कर है।दोनो रचनाएँ वैचारिक दृष्टि से सशक्त रचनाएँ हैं।सन्ध्या झा जी को बधाई।

    ReplyDelete
  12. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  13. आलोचनाएँ कभी कर्म पथ को नहीं रोक सकती , एक अच्छे संदेश युक्त रचना के लिए संध्या जी को बधाई ।

    ReplyDelete
  14. आशावादी और सकारात्मक सोच से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। संदेश देतीं उत्तम रचनाएँ। बधाई संध्या झा जी

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  16. भावपूर्ण एवँ प्रेरणादायी कविताओं के लिए हार्दिक बधाई संध्या झा जी !!

    ReplyDelete
  17. दोनों रचनाएँ सकारात्मक, प्रेरणा देती हुई!
    बहुत बधाई संध्या झा जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

    ReplyDelete