1-आलोचना
संध्या झा
कौन कहता हैं आलोचनाएँ प्रगति पथ पर रोड़े जैसी हैं ?
कौन कहता हैं आलोचनाएँ बल नहीं देती ?
कौन कहता हैं आलोचनाएँ सबंल नहीं देती?
आलोचनाएँ प्रगति पथ प्रशस्त करती हैं ।
आलोचनाएँ रक्त में उबाल भरती हैं
।
आलोचना हैं तो क्या साहस से खड़ा हूँ मैं ?
आलोचना हैं तो क्या पर्वत से लड़ा हूँ मैं?
आलोचनाएँ हमको सुमार्ग देती हैं ।
आलोचनाएँ हमको गंतव्य हजार देती हैं ।
आलोचनाएँ मझधार में पतवार जैसी हैं ।
आलोचनाएँ संघर्ष पथ पर फुहार जैसी हैं ।
आलोचना नहीं जिसकी समझो वो जीवित नहीं यहाँ ।
जो चाँद बन चमका उसकी हुई आलोचना
यहाँ ।
आलोचनाओं की सीढ़ी बनाकर व्योम पर चढ़ूँगा मैं ।
चमकूँगा चाँद बनकर सबको रौशन करूँगा मैं ।
फिर आलोचनाओं से क्यों डरकर जिएँगे हम ?
आलोचनाओं को शीर्ष पर रख आगे बढ़ेगें हम ।।
भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो
सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे कि असमर्थ हो
।
ये कथिनाइयाँ तो है सखा,
फिर तुम क्यो नतमस्तक रहो
भाग्यवादिता की ये जो होड़ है, तुम्हे
पीछे खींचे चहु ओर है
भाग्यवादिता अनुकरणीय नही, यह
त्याज्य और कायरों का शोर है।
भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो
सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे असमर्थ हो ।
भाग्यवाद ,भाग्यवाद ,
क्यों करूँ यह भाग्यवाद
इतनी शक्ति तुम में है, फिर भी कहो तुम भाग्यवाद
भाग्यवादिता कुछ है नहीं, यह मन का भ्रम जाल है
नर हो तुम में साक्षात्
नारायण का ही वास है
फिर यह कैसी विडंबना जो तू पड़ा निढाल हैं ।
भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो
सशक्त हो समर्थ हो तो
क्यों लगे असमर्थ हो ।
उपालम्भ की न सोचो तुम,
धैर्य धर न बैठो तुम
प्रगति पथ को तुम चुनो, निरंतर शोध
तुम करो
वो शिखर है तुमको देखता ,सफलता
खोजती तुमको
फिर है देरी किस बात की विलंब न क्षणभर करो
स्वयं का ही नहीं संसार का उत्कर्ष हो।
भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो
सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे असमर्थ हो।
आज भाग्यवादी बन जाओगे, कल क्या फिर पाओगे
आने वाली पीढ़ी को यह मुँह कैसे दिखलाओगे
उठो ,गिरो ,गिरो, उठो, शिखर चूमकर रुको
कठिनाइयाँ जब टकराएँगी तो ठोकरें ही खाएँगी
तुम्हारे समक्ष आने से पहले सौ बार वो सकुचाऐंएँ ।
भाग्यवादी मत बनो कर्म पथ को तुम चुनो
सशक्त हो समर्थ हो तो क्यों लगे असमर्थ हो ।।
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दोनों रचनाएं आशावादी और जीवन में नव ज्योति जगाने वाली हैं | आलोचना एक जीवन कसौटी है जो मनुष्य को नैतिक बल देती है | कायर पुरुष एक अधारा || दैव् दैव आलसी पुकारा|| तुलसीदास
ReplyDeleteपढकर मन खुश हो गया क्योंकि मैं भी इसी प्रकार की सोच रखता हूँ |श्याम हिंदी चेतना
धन्यवाद सर 🙏
Deleteसंध्या झा जी दोनों कविताएँ प्रेरक, सुंदर। बधाई आपको।
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteसुंदर रचनाये
ReplyDeleteसंध्या जी की दोनों ही कवितायें आशा का संचार करती हैं | विशेषकर "आलोचना" कविता की अंतिम पंक्ति ..."आलोचनाओं को शीर्ष पर रख आगे बढ़ेंगे हम "| अति उत्तम | हार्दिक बधाई स्वीकारें संध्या जी |
ReplyDeleteआभार 🙏
Deleteसुंदर भावपूर्ण रचनाओं के लिए बढई सन्ध्या जी!
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteसही कहा संध्या जी, जिन्हें अपने पर विश्वास होता है वे आलोचनाओं से घबरा कर अपना साहस नहीं खोते बल्कि दुगने आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते हैं। दोनों ही कविताएँ प्रेरणादायी हैं ।बहुत-बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteसुंदर रचनाएं,हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteजीवन को प्रेरित करती प्रेरणादायी कविता!
ReplyDeleteसुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीया!
सादर!
ह्रदय से धन्यवाद 🙏
Deleteसंध्या दोनों ही रचनाएं पाजिटिव सोच वाली हैं और रचनाकार की तरफ से आश्वस्त करती हैं कि हम अपना काम करें और दूसरों को उनका काम करने दें। इसी में हमारी बेहतरी है।
ReplyDeleteसर आभार 🙏
Deleteबेहद उत्साहवर्धक, आशावादी विचारों की अभिव्यक्ति की गई है कविता के माध्यम से । जिंदगी में एक सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाने को प्रेरित करती रचना ।खूबसूरत विचारों से जिंदगी में आशा की नूतन किरणें जगाने का उत्कृष्ट प्रयास । सुन्दर शब्दों का समावेश रचना की खूबसूरती में इजाफा करता है । सन्ध्या झा जी को इस कृति के लिए साधुवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर 🙏
Deleteआलोचनाओं को सीढ़ी बनाकर व्योम पर चढ़ने का सकारात्मक भाव ही प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है,साथ ही भाग्यवाद को नकार कर कर्मपथ पर चलकर लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग ही श्रेयस्कर है।दोनो रचनाएँ वैचारिक दृष्टि से सशक्त रचनाएँ हैं।सन्ध्या झा जी को बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद सर 🙏
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ReplyDeleteआलोचनाएँ कभी कर्म पथ को नहीं रोक सकती , एक अच्छे संदेश युक्त रचना के लिए संध्या जी को बधाई ।
ReplyDeleteआभार सर 🙏
Deleteआशावादी और सकारात्मक सोच से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। संदेश देतीं उत्तम रचनाएँ। बधाई संध्या झा जी
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
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Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण एवँ प्रेरणादायी कविताओं के लिए हार्दिक बधाई संध्या झा जी !!
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ सकारात्मक, प्रेरणा देती हुई!
ReplyDeleteबहुत बधाई संध्या झा जी!
~सादर
अनिता ललित
बहुत सुन्दर रचनाएँ
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