1-रिहाई
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
आज, न जाने
क्या बात है...
यूँ तो सब कुछ वही है
पर एक बेचैनी का एहसास है,
हर साल ही तो, आता है पतझड़
जाते हैं पत्ते, सरपट हवाएँ......
इस बार,
फिर ऐसा क्या खास है?
कुछ होने को है!..... या शायद हो रहा है,
मेरी रूह को मानो, एक भीना सा आग़ाज़ है
आज न जाने क्यूँ , लयबद्ध सी हो रही हूँ मैं
कभी बेरहमी, तो कभी मुक्ति का आभास है...
बोरिया-बिस्तरा बाँध,
क्या पंछी,
क्या गिलहरी
सभी दुबकने को तैयार हैं
हर तरफ,
एक चला-चली का माहौल है.....।
मेरी इमारत में भी, कुछ खिड़कियाँ चर्रा रहीं हैं
ढीली सी साँकल, खुलने की हसरत जता रहीं हैं
भूली बिसरी यादों, वादों और शिकायतों के परिंदे
बरसों से कैद ,आस मुक्ति की लगाएँ बैठें हैं...
सोचती हूँ,
चित्र; प्रीति अग्रवाल |
मैं भी अलविदा कह ही दूँ !
कब तक थामूँ,
और क्यों थामूँ?
आज लौटा ही दूँ उन सबको
जो छटपटा रहें हैं मुझमें, रिहा होने को
आज कह ही दूँ हवाओं से -
लो! इन सब को भी उड़ा ले जाओ
संग अपने,
दूर बहुत दूर.....
और, मैं भी
आज उठूँ और खड़ी हो जाऊँ,
बेख़ौफ़,
बिन मुखोटे, बेझिझक, बेपरवाह,
इन स्वाभिमानी, दरख़्तों की तरह !!!
-0-
2-मील का पत्थर
अर्चना राय
बेमतलब कट रही थी जिंदगी
जिसका कोई मर्म न था
कोई न स्पंदन था।
तन्हा था मन
कोई हमदम न था।
मिलकर तुमसे.....
लगा लक्ष्य मिल
गया
जीने का एक नया
आयाम मिल गया
साथ अपने हजारों
सपने दे गया,
इस बेमानी दुनिया में
जीने के मायने दे गया
सूने दिल को सरगम दे गया।
तन्हा मन को गुलजार कर गया
हाँ मैं भी हूँ, मेरा भी
अस्तित्व है बाकी
मेरे होने का एहसास भर गया
मेरा लेखन
जीवन में मेरे.....
मील का पत्थर बन गया।
-0-
3- आँखों में नमी
मुकेश बेनिवाल
आँखों में नमी लेकर
मुस्कुराते तो बहुत
हो
कुछ नहीं है कहकर
छुपाते तो बहुत हो
झरोखों से झाँक ही
लेते हैं
ये कमबख़्त अश्क
पलकों के पर्दे
गिराते तो बहुत हो
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आदरणीय भाई साहब , मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति अर्चना जी, वाकई जो एक बार हाथ में कलम थाम ले तो लेखन जैसा साथी कोई नहीं होगा, आपको बहुत बहुत बधाई।
मुकेश जी अश्क कैसे सारी पोल-पट्टी खोल देते हैं ,आपने बड़ी खूबसूरती से कह दिया, आपको भी बधाई!
सुन्दर रचनाएँ।
ReplyDeleteतीन कवयित्रियों की सुंदर रचनाएँ,प्रीति अग्रवाल की 'रिहाई' में अतीत की निरर्थकता से मुक्ति का संकल्प है,अर्चना राय की 'मील का पत्थर'में भी जीवन की सार्थकता की तलाश लेखन में खोजने का विश्वास है वहीं मुकेश बेनिवाल की लघु कविता'आँखों की नमी'में प्रेम की सहज अभव्यक्ति की है।तीनो को बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteअच्छी रचनाएँ , अच्छा मंच । प्रीति जी , अर्चना जी एवं मुकेश जी को शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteतीनों कविताएँ बहुत सुंदर हैं ।प्रीति जी,अर्चना जी,मुकेश जी बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteप्रीति जी, अर्चना जी एवं मुकेश जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।
बहुत सुंदर सृजन। प्रीति जी, अर्चना जी, तथा मुकेश जी बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteतीनों कविताएं बेहद खूबसूरत हैं ।प्रीति जी,अर्चना जी,मुकेश जी बहुत-बहुत बधाई ।
ReplyDeleteप्रीती जी अर्चना जी एवं मुकेश जी ,
ReplyDeleteसारी रचनाएं बहुत ही सुंदर, नवीन संदेशों के साथ , जीवन से सम्बन्धित |सभी को ह्रदय से शुभकामनाएं |श्याम हिन्दी चेतना
आदरणीय भाई साहब, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
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आदरणीय शास्त्री जी, शिवजी भैया, सोनी जी, सुदर्शन दी, पूर्वा जी, कृष्णा जी और सुरँगमा जी, आप सभी का हृदय तल से आभार!!
ReplyDeleteजी आपका हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteसुंदर रचनाएं, हार्दिक बधाई सभी रचनाकारों को।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कवितायें हैं आप सभी की, प्रीति क्या खूब सोच है ढीली सी सांकल खुलने की हसरत जता रही है ..., अर्चना जी क्या खूब लिखा है ... इस बेमानी दुनिया में जीने के मैने दे गया सच लेखन तनहा जीवन केन रस घोलता है |मुकेश जी आपकी कविता के भी सुन्दर भाव हैं आप तीनो को हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteतीनों रचनाएँ बहुत सुंदर है. प्रीति जी, अर्चना जी एवं मुकेश जी को बहुत बधाई.
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ReplyDeleteआप सभी की रचनाएँ बेहद ख़ूबसूरत !
प्रीति जी,अर्चना जी एवँ मुकेश जी को हार्दिक बधाई !