1-तुम्हारे लिए-प्रियंका गुप्ता
चाहा था तुमने
लिखूँ मैं कोई कविता
तुम्हारे लिए
सबसे अलग
सबसे जुदा
सबसे अनोखी
कोई कविता;
आसमान नहीं
परियाँ नहीं
फूल और बाग बगीचे नहीं
न ही जिक्र हो कहीं
चाँद-तारों का-
गढ़ूँ मैं उपमा कोई नई ही;
पर सोचता हूँ
लिखूँ तो क्या लिखूँ ?
उपमा गढ़ना मुश्किल तो नहीं
पर क्यों करूँ ऐसा ?
जब कि तुम खुद ही हो
खुद में मुक़म्मल
एक कविता,
और कविता के लिए भी
कोई कविता लिखता है भला !!!
-0-
2-दोहे -ज्योत्स्ना प्रदीप
1
करें नमन उनको सभी, जो क़ुदरत के नूर ।
धरती उनसे ही बची, वो ही कोहेनूर ।।
2
क़ुदरत तो नाराज़ है, मानव अब मजबूर ।
कुछ अपनों के पास हैं, कुछ अपनों से दूर ।।
3
मज़दूरों की बेबसी, चलते मीलों -मील ।
सूख रही है रात दिन, उन नयनों की झील ।।
4
रोगों का ना ख़ौफ़ है, खाली पेट ग़रीब ।
कूड़े में भी ढूँढता, खोजे रोज़ नसीब।।
5
ऐसे सोये थे सभी, सारे वो मज़दूर।
देख सके ना फिर कभी, सूरज का वो नूर ।।
6
मज़दूरों की बेबसी, सहम गई थी रात ।
पटरी पर भी सो गए, कैसे रे हालात ।।
7
खिड़की से झाँको ज़रा,विहगों की है भीड़ ।
हर्ष मनाते वे सभी, मानव अपने नीड़।।
8
पंछी भी गाने लगे, अपने ही कुछ राग ।
उनमें भी कब से भरी, आज़ादी की आग ।।
9
क्यारी में जीवन खिला, खिले अनेकों फूल ।
निखरे -निखरे अंग हैं, उन पर ना अब धूल ।।
10
चलो बचा लें आज से, क़ुदरत की सौगात ।
खुशियों से बिछ जाएगी, फिर से नेह -बिसात।।
11
कुछ तो भारी हो गई, इस दुनिया से चूक
महफ़िल में भी हो गया, मानव कितना मूक ।।
12
गंगा,यमुना खिल उठीं ,निखरे दर्पण -गात ।
नद पर गिरते प्रेम से, ये हरियाले पात ।।
13
नभ निखरी चादर बना, चंदा कोहेनूर ।
तारे हीरक-से लगें,दीपित नभ भरपूर ।।
14
फूलों के सेहरे बनें , पेड़ बनें महबूब ।
इतराती हैं आज -कल, कलियाँ भी तो खूब ।।
15
घूम रहे बेख़ौफ़ हो, मृग, कुंजर, घड़ियाल ।
मानव जीता ख़ौफ़ में, लेकर कई सवाल ।।
16
आँखों से जो ना दिखे, जग को नाच नचाय ।
खुद को माने जो खुदा, सोच -सोच पछताय ।।
-0-
3-अनुभूतियाँ- प्रीति अग्रवाल
1.
इशारे पे जिसके ये सब हो रहा है...
फरियाद लें हम, उसी दर पे पहुँचे!
2.
खता तो न पता, पर होगी संगीन
अंदाज़ा सज़ा से, हम लगा रहें हैं।
3.
ऐसी उलझी है, रेशम-सी जीवन की डोर
कहीं भी सिरे, न कोई मिल रहे हैं....।
4.
डबडबाई- सी आँखें, डूबा-डूबा- सा मन है
एक हो तो कहूँ, क्या कहूँ कि क्या ग़म है!
5.
दूर, आसमानों के पार, कुछ भी नहीं!
यहीं तो है स्वर्ग, और जहन्नुम यहीं।
6.
चाँद तारों को छूने की, उनको लगी...
जो दिल तक किसी के, न पहुँचे कभी!
7.
क्या खूब जुगलबंदी, हुई आज यारो!
निगाहों की भाषा, निगाहों ने बाँची!
8.
सफाई से हम झूठ कहने लगे हैं....
न जाने ये इश्क, और क्या-क्या सिखाए!
9.
धरती अम्बर क्षितिज पर, कुछ ऐसे मिलें
कसमसाया ये मन, तुम बहुत याद आए।
10.
न करो तुम याद, न याद आया करो....
जो उठती है हिचकी, तो रुकती नहीं है।
11.
ऐ दोस्त तू हमदर्दी, बस थोड़ी जता...
सिले घाव, फिर से, खुले जा रहें हैं!!
12.
तुम 'तुम्हीं' में लगे, हम 'हमीं' में लगे
मिलके जो कभी की, तो महज़ बहसबाजी।
13.
ये दरारें, खाई कहीं बन न जाएँ
चलो अलविदा, उससे पहले ही कह दें...।
14.
हुई साँझ, पंछी भी घर को हैं जाते
क्या अच्छा होता, जो तुम भी लौट आते...!
15.
न ये गीत, न ग़ज़ल, न है कोई कहानी
एक घुटन थी, जो बस, हो रही है ज़ुबानी...।
-0-
"एक कविता के लिये भी कोई कविता लिखता है भला"...बहुत सुंदर भावनात्मक अभिव्यक्ति प्रियंका गुप्ता जी..बधाई। प्रीति अग्रवाल जी की अनुभूतियाँ एवम ज्योत्स्ना प्रदीप जी के दोहे भी प्रभावी हैं। दोनों कवयित्रियों को भी बधाई।
ReplyDeleteप्रियंका जी, ज्योत्सना जी, प्रीती जी...
ReplyDeleteसभी को बधाइयाँ सुन्दर सारगर्भीत अभिव्यक्ति के लिए|
आदरणीय काम्बोज भाई साहब, इस सुंदर मंच के लिए आपका बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteप्रियंका जी आपकी कविता बड़ी ही मनमोहक, बहुत आनन्द आया।
एक से बढ़कर एक दोहे रचे हैं आपने ज्योत्स्ना जी।
आप दोनों को बधाई!
बहुत सुंदर कविता प्रियंका जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर मनभावन दोहे ज्योत्स्ना जी
असरदार अनुभूतियां प्रीति जी
आप सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
प्रियंका जी भावपूर्ण कविता की बधाई।
ReplyDeleteज्योत्स्ना जी सुंदर दोहे, समसामयिक भी, बधाई।
प्रीति जी अनुभूतियां अच्छी लगी, बधाई।
प्रियंका गुप्ता जी, ज्योत्स्ना प्रदीप जी एवं प्रीति अग्रवाल जी को बहुत सुंदर,प्रभावी रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteप्रियंका जी की कविता बेहद सुन्दर ,ज्योत्सना जी के प्रभावशाली सामयिक दोहे,प्रीति जी की अनुभूतियाँ हमेशा की तरह कमाल!!!बधाई आप सबको ।
ReplyDeleteसुंदर कविता ... प्रियंका जी!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब दोहे ... ज्योत्स्ना जी!
लाजवाब अनुभूतियाँ ... प्रीति जी!
एक से बढ़कर एक सभी रचनाएँ!
आप सभी को बहुत-बहुत बधाई!
~सादर
अनिता ललित
एक कविता के लिए भी
ReplyDeleteकोई कविता लिखता है भला । वाह! बहुत खूबसूरत भाव, मनमोहक कविता ।बधाई प्रियंका जी
समसामयिक ,मनभावन दोहे ।बधाई ज्योत्सना जी
लाजवाब अनुभूतियाँ ।बधाई प्रीति जी/
प्रियंका जी की सुंदर रचना ज्योत्स्ना जी के बढ़िया दोहे तथा प्रीति जी की ख़ूबसूरत अनुभूतियाँ।
ReplyDeleteआप सभी को बहुत-बहुत बधाई।
प्रियंका -ज्योत्स्ना -प्रीती जी की रचनाएं पढने के बाद मैं इस निर्णय पर पहुंचा कि कविता लिखना और नयी - कल्पनाओं से उसे व्यक्त करना कठिन कर्म है | सभी की रचनाएं स्तरीय , मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं | सभी को ढेर सारी बधाई -श्याम हिंदी चेतना
ReplyDeleteआदरणीय भाई साहब आपके स्नेह भरे आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत आभार!
Deleteआपके आशीर्वाद के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीय !
Deleteआदरणीय शिवजी भैया, नीतिश जी, शास्त्री जी,मधु जी, मंजुषा जी, अनिता जी, रीत जी, सुरँगमा जी, अनिता जी, सुदर्शन जी, कृष्णा जी, आप सब का हृदय तल से आभार!!
ReplyDeleteसबसे पहले आदरणीय काम्बोज जी का आभार मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए...|
ReplyDeleteआप सभी की उत्साहवर्द्धक टिप्पणियों के लिए आप लोगों का तहे दिल से शुक्रिया...|
ज्योत्स्ना जी के बेहतरीन दोहों और प्रीति जी की बेहतरीन अनुभूतियों के लिए दोनों को बहुत बधाई...|
आ.भैया जी का हार्दिक आभार मेरे दोहों को यहाँ स्थान जो दिया,साथ ही आप लोगों का भी तहे दिल से धन्यवाद... आप सभी बहुत उत्साह बढ़ाते हैं |
ReplyDeleteप्रियंका जी की बेहद प्यारी कविता और प्रीति जी की बहुत ख़ूबसूरत अनुभूतियों के लिए बहुत-बहुत बधाई !