दस्तक दे दी है
शशि पाधा
दस्तक दे दी है
फिर से
फ़ोटो-शशि पाधा |
वसंत ने
उसे शायद पता नहीं
कि
धरती जूझ रही है
अनजान दुश्मन से
पहाड़ खड़े हैं
हैरान–बेजान
नदियाँ–सागर
पूछ रहे हैं
जटिल प्रश्न
हाथ मलता देख रहा है
आसमान
और दुश्मन
चुपके से कर रहा है
प्रहार,आघात
ओ रे वसंत!
तुम्हारे पास तो होगी न
कोई छड़ी, जादू की-------
सुन रहे हो न ??????
वह छड़ी घुमा दो
जितने भी पतझरी प्रयास हैं,
उन्हें भगा दो !
-0-
संकट की इस घड़ी में प्रकृति का सहयोग भी आवश्यक है। तुम्हारे पास तो होगी न, कोई छड़ी जादू की। बहुत सुन्दर भाव लिए कविता ।बधाई ।
ReplyDeleteशशि पाधा जी की कविता विषयवस्तु और भाव दोनों ही दृष्टि से उत्तम कविता है।
ReplyDeleteमेरी कविता को पसन्द करने के लिए धन्यवाद । - शशि पाधा
ReplyDeleteबेहतरीन कविता के लिए बहुत बधाई शशि जी...
ReplyDeleteआज के सन्दर्भ में कितना सटीक शब्द है पतझरी प्रयास. बहुत भावपूर्ण रचना, बधाई शशि जी.
ReplyDeleteवाह शशि जी आज कोरोना के संकट में वसंत से जादू की छड़ी घुमाने की गुहार अत्यंत मन भावन कविता है बधाई स्वीकारें |
ReplyDeleteरचनाओं को स्थान देने हेतु हिमांशु जी शतशत आभार
ReplyDelete"सहज साहित्य" निस्संदेह एक सार्थक पहल है, जिसका ऐतिहासिक महत्व है। हिमांशु जी आपकी निष्ठा और लगन स्तुत्य।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteTesting
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