पथ के साथी

Monday, April 6, 2020

आवेग है इसमें

 डॉ.कविता भट्ट

 1

 अजब सा दौर है, अजब दस्तूर है,

ग़म की स्याही में शख़्स हर चूर है।

जीने के वास्ते, तुम गीत गाते रहो-

जिंदगी प्यार है और मुस्कराते रहो।

 

बहुत मशगूल हैं, अब शहर दोस्तों,

घर किसी के कोई आता-जाता नहीं।

मेरे घर आओ तो- ये तुम्हारा ही है,

और कभी मुझे भी घर बुलाते रहो।

 

माना कि रोटियाँ हैं जरूरी मगर,

लोग खुश वे भी हैं, दो कमाते हैं जो।

चुस्कियाँ चाय की, सुर मिलाते रहो।

जिंदगी प्यार है और मुस्कराते रहो।

-0-

2-मेरे भीतर

 

मेरे भीतर

जो चुप -सी नदी बहती है

वेग नहीं, किन्तु आवेग है इसमें

बहुत वर्षों से-

डुबकी लगा रही हूँ

अपने को खोज न सकी अब भी

न जाने किस आधार पर

मैं अपने जैसे-

एक साथी की खोज में थी।

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