पथ के साथी

Wednesday, January 29, 2020

950-यह पूछना फ़िजूल

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
दर्द कहाँ है यह पूछना फ़िजूल
पूछिए यह कि कहाँ नहीं है दर्द।
2
हम तो वफ़ा करके पछताए ताउम्र
उन्हें  बेवफाई का ज़रा मलाल नहीं।


चित्रःहिमांशु


3
कभी पूछना न झील  कि अब तक कहाँ रहा
डूबता जब दिल तुम्हारे पास आता हूँ।





4
चित्रःहिमांशु

ग़म न कर  कि  पत्ते सब गए हैं छोड़कर।
कल आएगी बहार सब लौट आएँगे।






चित्रःहिमांशु
5
सूख गए पर साथ नहीं छोड़ा है आज तक
बुरे दिनों के दोस्त हैं ,जाते भी तो कैसे
6
दुआओं का असर हो न हो यह तो मुमकिन
बद्दुआएँ मगर कभी पीछा न छोड़ती

15 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन ।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही भावपूर्ण सृजन
    🙏🙏

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं भाई साहब |हार्दिक बधाई स्वीकारें |

    ReplyDelete
  4. सभी क्षणिकाएँ सुंदर , हृदयस्पर्शी ....
    हार्दिक शुभकामनाएँ सर

    ReplyDelete
  5. मर्मस्पर्शी सृजन...बहुत बधाई भाईसाहब।

    ReplyDelete
  6. sunder chitr aur bahut sunder kavitayen
    rachana

    ReplyDelete
  7. एक अलग ही अंदाज़ है ये आपका,आपकी ये चंद पंक्तियाँ अपने शिल्प और कथन में अशआर ही प्रतीत होते हैं।बहुत सुंदर।हार्दिक बधाई भाई साहब।

    ReplyDelete
  8. सभी पंक्तियाँ सुंदर और भाव लिए!बधाई एवम शुभकामनाएँ स्वीकारें भाई साहब।

    ReplyDelete
  9. भावपूर्ण सृजन भैया।

    ReplyDelete
  10. आप सभी आत्मीयजन का हार्दिक आभार .
    रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

    ReplyDelete
  11. गहरी, मार्मिक एवं भावपूर्ण पंक्तियाँ!
    हार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

    ReplyDelete
  12. आभार अनिता बहन

    ReplyDelete
  13. हृदय की पीड़ा को प्रकृति के चित्रों और कविता के भावों द्वारा जीवंत किया है । सुन्दर । बधाई हिमांशु भाई ।

    ReplyDelete

  14. बहुत सुन्दर सृजन....हार्दिक बधाई भैया जी !

    ReplyDelete