पथ के साथी

Wednesday, January 22, 2020

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 1-नदिया जैसी रात -शशि पाधा 
1
नीले नभ से ढल रही, नदिया जैसी रात
ओढ़ी नीली ओढनी,चाँदी शोभित गात
 2
श्यामल अलकें खोल दीं, तारक मुक्ताहार
माथे सोहे चन्द्रिमा,चाँद गया मन हार
 3
सागर दर्पण झाँकती,अधरों पे मित हास
लहरें हँसती डोलतीं, नयनों में परिहास
 4
छम-छम झांझर बोलतीं,धीमी -सी पदचाप
पात-पात पर रागिनी,डाली-डाली थाप
 5
मंद- मंद बहती पवन,मंद्र लहर- संगीत
रजनीगंधा ढूँढती,तारों में मनमीत
 6
ओट घटा के चाँद था,रात न आए चैन
नभ, तारों में ढूँढते,विरहन के दो नैन
 7
चंचल चितवन चातकी,श्याम सलोनी रात
चंदा देखें एकटक, दोनों बैठी साथ
 8
श्वेत कमलिनी झील में,रात सो गई संग
लहरों में घुल -मिल गए,नीलम-हीरा रंग
 9
भोर पलों में भानु ने,मानी अपनी भूल
धरती की  झोली भरे ,पारिजात के फूल
-0-
2-कृष्णा वर्मा
1
बीते कल के सबक से ,सीखा क्या नादान
आज वही करने लगा, सहने को अपमान।
2
अपने कब अपने रहे, प्रेम हुआ है सर्द
मन की मन में ही रही ,किसे बताते दर्द।
3
पत्थर दिल पिघले नहीं, होता बड़ा कठोर
समय गँवाना क्यों भला, तोड़ो उनसे डोर।
4
दिल की धड़कन की तरह , मन में रहते आप
भक्त और भगवान-सा , है रिश्ता निष्पाप।
5
जिनकी ख़ातिर मैं सदा ,करता रहा प्रयास
धोखा उनसे ही मिला ,जिनसे थी सुख -आस।
6
वही हराते हैं सदा ,हो जिन पर अभिमान
दिल को चकनाचूर कर, दे जाते अपमान।
7
भीतर-भीतर घुट मरा ,मुख न पाया खोल
सुधा समझ दुख  पी लिया ,रिश्ता था अनमोल।
8
बीती जो मन पर सदा ,वह समझेगा कौन
धर जिह्वा  दाँतों तले , बैठे हैं हम मौन।
9
जिनको अपना जानकर, रखते  थे सद्भाव
बेरहमी से दे गए ,वे ही गहरे घाव।
10
क़दम बढाते वक़्त तुम ,बस रखना यह ध्यान
जिसको समझा मीत है, क्या उसकी पहचान।
-0-
3-अनिता मंडा
1.
मल्लाहों के पास है, कश्ती बिन पतवार।
हमें दिखाएँ ख़्वाब वो, कर लो दरिया पार।।
2.
होठों पर हैं चुप्पियाँ, भीतर कितना शोर।
सूरज ढूँढे खाइयाँ, कैसे भोर।।

3
परछाई है रात की, बुझी-बुझी सी भोर।
उजियारे के भेष में, अँधियारे का चोर।।
4
जुगनू ढूँढें भोर में, पतझड़ में भी फूल।
कुदरत के सब क़ायदे, लोग गए हैं भूल।।
5
प्रतिलिपियाँ सब नेह की, दीमक ने ली चाट।
पांडुलिपि धरे बैर की, बेच रहे हैं हाट।।
6
सूनी घर की ड्योढियाँ, चुप हैं मंगल गीत।
जाने किस पाताल में, शरणागत है प्रीत।।
7
आसोजा री पूर्णिमा, शरद चाँदनी रात।
बरसे इमरत नेह का, सुंदर यह सौगात।।
8
चखा धतूरा धर्म का, खोया होश-विवेक।
मानव मन जो एक थे, बिखरे बने अनेक।।
-0-

10 comments:

  1. बहुत सुंदर दोहे! हार्दिक बधाई आ. शशि दीदी, कृष्णा दीदी एवं अनिता!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. एक से बढ़कर एक मनभावन दोहे.....
    शशि जी, कृष्णा जी एवं अनिता जी सुंदर सृजन के लिए शुभकामनाएँ स्वीकारें

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  3. वाह शशि जी, अनिता जी और कृष्णा जी बहुत ही सुन्दर दोहे हैं।

    अनिता जी बिलकुल सही कहा अापने "चखा धतूरा धर्म का, खोया होश-विवेक / मानव मन जो एक थे, बिखरे बने अनेक" ये एक दोहा अाज के हालात की पूरी तस्वीर पेश करने में सक्षम है

    सादर
    मंजु मिश्रा

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  4. वाह!एक से बढ़कर एक दोहे।शशि जी,अनिता जी एवं कृष्णा जी
    बहुत-बहुत बधाई आप सभी को ।

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  5. बहुत सुंदर सभी दोहे...शशि जी, अनीता जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।

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  6. बहुत ही सुन्दर तथा सरस दोहे...आद.शशि जी,आद.कृष्णा जी तथा प्रिय अनिता जी को हार्दिक बधाई !!

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  7. जितनी बार पढ़े, और अच्छे लगे! बहुत ही बढ़िया दोहे।आप तीनों को ही बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ!

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  8. शशि जी, कृष्णा जी और अनिता जी आप सभी के दोहे बेहद सुन्दर सृजन हैं, गहरे भावों से पूर्ण हैं | सभी को हार्दिक बधाई |

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  9. शशि पाधा , कृष्णा वर्मा ,और अनिता मंडा आपसब के दोहे सरस , भावप्रवण हैं । सार्थक सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।

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  10. इस अनुपम प्रोत्साहन के लिए आभार, आदरणीया शशि जी कृष्णा जी के मधुर दोहे बहुत अच्छे लगे।

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