बढ़ता चल
डॉ0 सुरंगमा यादव
अँधेरों
से हम
नहीं डरने वाले
अँधेरों
को करके
सूरज के हवाले
हम चलते रहेंगे
यूँ हीं मतवाले
पाँव में बेशक
पड़े अपने छाले
कंटकों से ही हमने
हैं काँटे निकाले
और क्या हम सुनाएँ
ढंग अपने निराले
चले जा रहे हम अकेले
खुद ही खुद को सँभाले
धरा भी अकेली
चाँद-सूरज अकेला
मगर उनका कोई
सानी नहीं है
कह रहा मन निरंतर
चलाचल
गँवाए बिना पल।
-0-
आशा की किरण दिखाते हुए अकेले चलने का हौसला देती सुंदर कविता....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ सुरंगमा जी
आशावान बने रहने की प्रेरणा देती सुंदर कविता । बधाई सुरंगमा जी ।
ReplyDeleteसुरंगमा जी दिलों में जोश भरती सुन्दर रचना है, आज सेना दिवस के अवसर पर वीर जवानों की वीरता को दर्शाती कविता है |हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteएकला चलो रे!!!.....मानो तो हम अकेले हैं, मानो तो सब साथ! सुंदर कविता सुरँगमा जी, आपको बधाई।
ReplyDeleteबहुत शानदार रचना...हार्दिक बधाई सुरंगमा जी।
ReplyDeleteसदैव आगे बढ़ते रहने को प्रोत्साहित करती सुंदर कविता सुरंगमा जी!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई!
~सादर
अनिता ललित
बहुत बढ़िया रचना...हार्दिक बधाई सुरंगमा जी !
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