डॉ.सुरंगमा यादव
आ लौट चलें बचपन की ओर
माँ की गोदी में छिप जाएँ
खींचे कोई डोर
हर आहट पर ’पापा-पापा’ कहते
भागें द्वार की ओर
मिट्टी के रंगीन खिलौने
मिल जाएँ तो झूमें -नाचें
कॉपी
फाड़ें नाव बनाएँ
पानी में जब लगे तैरने
खूब मचाएँ शोर
भीग-भीगकर बारिश में
नाचें
जैसे मोर
गिल्ली-डंडा,खो-खो और कबड्डी
छुपम-छुपाई,इक्कल-दुक्कल,कोड़ा जमाल शाही
खेल-खेलकर करते खूब धुनाई
वह भी क्या था दौर!
कच्ची अमिया और अमरूद
पेड़ों पर चढ़ तोड़ें खूब
पकड़े जाने के डर से फिर
भागें कितनी जोर
आ लौट चलें बचपन की ओर!
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आ लौट चलें बचपन की ओर... बिलकुल सही, मन के बोझ कम करने को, बचपन की ओर लौटने की ही अावश्यकता है अाज इन्सान को
ReplyDeleteबचपन की सुहानी यादें लिए , सुंदर कविता सुरँगमा जी, आपको बधाई!
ReplyDeleteसुरंगमा जी बचपन की मीठी यादों को ताज़ा करती सुन्दर कविता है , सच में इंसान कितनी भी उम्र तय कर जाए बचपन की यादों के साथ जुडा ही रहता है |
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आपको |
मन छोटा सा बच्चा बन गया ये प्यारी सी कविता पढ़कर...
ReplyDeleteकच्ची अमिया और अमरूद
पेड़ों पर चढ़ तोड़ें खूब
पकड़े जाने के डर से फिर
भागें कितनी जोर
सच में ये सब कितना सुखद था.. मनमोहक रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई सुरंगमा जी !
सुन्दर कविता हेतु बधाई सुरंगमा जी
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteउम्र और अनुभव कितनी भी बढ़ जाए मन में छुपा बचपन यादों को समेटे वैसा ही रहता है। मनमोहक कविता। बधाई सुरंगमा जी
ReplyDeleteहिन्दी हाइकु में प्रीति अग्रवाल जी के बहुत सुंदर हाइगा।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06-01-2020) को 'मौत महज समाचार नहीं हो सकती' (चर्चा अंक 3572) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
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रवीन्द्र सिंह यादव
वाह ! बचपन की मीठी यादें ... बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबधाइयाँ सुरंगमा जी
सुन्दर चिन्तन है।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
बचपन सचमुच कितना मनोरम होता है | इन पंक्तियों से जाने कितना कुछ याद आ गया | इस प्यारी रचना के लिए मेरी ढेरों बधाई |
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना...सुरंगमा जी बहुत बधाई।
ReplyDeleteआप सभी का हृदय तल से आभार ।
ReplyDeleteवाह! बहुत ही ख़ूबसूरत कविता! बचपन की सारी यादें ताज़ा हो गईं! बहुत बधाई सुरंगमा जी!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित