मैं अकेला ही चला हूँ
रमेश
गौतम
मैं अकेला ही चला हूँ
साथ लेकर बस
हठीलापन
चित्र-रमेश गौतम |
एक ज़िद है बादलों को
बाँध कर लाऊँ यहाँ तक
खोल दूँ जल के मुहाने
प्यास फैली है जहाँ तक
धूप में झुलसा हुआ
फिर खिलखिलाए
नदी का यौवन
सामने जाकर विषमताएँ
समन्दर से कहूँगा
मरुथलों में हरीतिमा के
छन्द लिखकर ही रहूँगा
दर्प मेघों का
विखण्डित कर रचूँ मैं
बरसता सावन
अग्निगर्भा प्रश्न प्रेषित
कर चुका दरबार में सब
स्वाति जैसे सीपियों को
व्योम से उत्तर मिलें अब
एक ही निश्चय
छुएँ अब दिन सुआपंखी
सभी का मन
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बहुत प्यारा गीत. प्रेरक भाव की सुन्दर रचना. रमेश जी को बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर नवगीत हेतु हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteरमेश जी आपके गीत में सकारत्मक सोच को लेकर एक हठीलापन है जो आपकी रचना में देखने को मिलता है जैसे आपने लिखा है ..."मरुथालों में हरीतिमा के छंद लिख कर ही रहूंगा" बहुत सुन्दर रचना है हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteइस रचना में प्रकृति संवारने की कवि की जिद मुझे अच्छी लगी ।बधाई
ReplyDeleteरमेश कुमार सोनी , बसना , छत्तीसगढ़
गौतम जी का गीत अत्यंत प्रेरणात्मक और उत्साह पूर्ण लगा | आप के मन में कुछ करने की एक धुन है और वह अवश्य पूर्ण होगी | काव्य में बड़ी शक्ति होती है | बधाई के पात्र हैं आप | श्याम त्रिपाठी हिन्दी चेतना
ReplyDeleteमन वचन और कर्म का अद्भुत समन्वय साधता गीत, सचमुच एक सुन्दर रचना है | सुरेन्द्र वर्मा|
ReplyDeleteमन की इच्छाओं में हठीलापन व प्रकृति से अनुबंध नवगीत में रचा बसा से है आपको बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर बेहतरीन गीत...रमेश जी को बहुत बधाई।
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ReplyDeleteसुन्दर नवगीत हेतु रमेश जी को हार्दिक बधाई !
बहुत सुन्दर...मेरी बधाई स्वीकारें...|
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