1-होना
मत मन तू उन्मन
डॉ. सुरंगमा यादव
अंधकार का वक्ष चीरकर
चित्र-प्रीति अग्रवाल |
फिर चमकेगा नवल प्रभात
अँधियारों की उजियारों से
।चलती रहती जंग सदा
रात-दिवस तो बने पताका
बस आते-जाते रहते
पाया है जब सुख का चंदन
यहीं मिलेंगे दुःख के व्याल
गति पवन बदलता रहता
सदा काल की तरह यहाँ
नदिया का भी यहाँ हमेशा
नहीं समान प्रवाह रहा
जीवन भी नदिया की धारा
कभी सिमटना,कभी बिफरना
और कभी विस्तार मिला
उमड़-उमड़ कर दुःख की लहरें
लाएँगी
सुख के मणिगण
होना मत मन तू उन्मन !
-0-
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1-फ़रिश्ता
चित्र-प्रीति अग्रवाल |
-प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'
एहसानों की फ़ेहरिस्त
बड़ी हो रही है,
माथे पे चिंता
घनी हो रही है।
अभावों में डूब,
तिनके ढूँढती हूँ जब,
हौले -हौले कोई आवाज़
कानों में गूँजती है तब,
मेरा खुदा, सकुचाया- सा
मुझसे कहे-
क्या करूँ , ये सारे,
करम हैं तेरे!
पर रुक, कुछ फ़रिश्ते
भी संग कर रहा हूँ,
हिफ़ाज़त के सारे
प्रबन्ध कर रहा हूँ।
पंखों पे सजाकर
ले जाएँ उस पार,
लगी, तो लगी रहने दे
अभावों की कतार!!
सोच में खड़ी है,
क्या कोई असमंजस-
इक फ़रिश्ते ने पूछा
काम से रुककर।
अभाव जितने,
दोगुने फ़रिश्ते,
कर्ज़ कैसे अदा हो
ये दुविधा बड़ी है !
मुस्कुराया, सुझाया,
है यह भी तो सम्भव,
तू फ़रिश्ता हमारी थी
जन्मों जन्म तक!!
एहसान तेरे
चुकाए जा रहे हैं,
न कि कर्ज़
चढ़ाए जा रहे हैं!
ऐसा तो पहले
सोचा ही नहीं था,
हुई खुश मैं,
और मेरा खुदा भी खुश था!!!
-0-
2-मुलाक़ात
एहसानों की फ़ेहरिस्त
बड़ी हो रही है,
माथे पे चिंता
घनी हो रही है।
अभावों में डूब,
तिनके ढूँढती हूँ जब,
हौले -हौले कोई आवाज़
कानों में गूँजती है तब,
मेरा खुदा, सकुचाया- सा
मुझसे कहे-
क्या करूँ , ये सारे,
करम हैं तेरे!
पर रुक, कुछ फ़रिश्ते
भी संग कर रहा हूँ,
हिफ़ाज़त के सारे
प्रबन्ध कर रहा हूँ।
पंखों पे सजाकर
ले जाएँ उस पार,
लगी, तो लगी रहने दे
अभावों की कतार!!
सोच में खड़ी है,
क्या कोई असमंजस-
इक फ़रिश्ते ने पूछा
काम से रुककर।
अभाव जितने,
दोगुने फ़रिश्ते,
कर्ज़ कैसे अदा हो
ये दुविधा बड़ी है !
मुस्कुराया, सुझाया,
है यह भी तो सम्भव,
तू फ़रिश्ता हमारी थी
जन्मों जन्म तक!!
एहसान तेरे
चुकाए जा रहे हैं,
न कि कर्ज़
चढ़ाए जा रहे हैं!
ऐसा तो पहले
सोचा ही नहीं था,
हुई खुश मैं,
और मेरा खुदा भी खुश था!!!
-0-
2-मुलाक़ात
चित्र-प्रीति अग्रवाल |
नहीं है, तो न सही
फुर्सत किसी को,
चलो आज खुद से,
मुलाकात कर लें!
वो मासूम बचपन,
लड़कपन की शोख़ी,
चलो आज ताज़ा,
वो दिन रात कर लें।
वो बिन डोर उड़ती,
पतंगों सी ख्वाहिशें,
बेझिझक, जिंदगी से,
होती फ़रमहिशे,
चलो ढूँढे उनको
कभी थे जो अपने,
पिरो लाएं, मोती से,
कुछ बिखरे सपने।
यूँ तो बुझ चुकी है,
आग हसरतों की,
चिंगारियाँ पर कुछ,
हैं अब भी दहकती,
दबे, ढके अंगारों की
किस्मत सजा दे,
नाउम्मीद चाहतों को
फिर से पनाह दे!
न गिला, न शिकवा,
सब कुछ भुला दें,
खुश्क आंगन में दिल के,
बेशर्त, बेशुमार,
नेह बरसा दें!!
चलो आज खुद से
मुलाकात कर ले.......!
-0-
बहुत खूब सुरंगमा जी। सुख का चंदन, दुख के व्याल!अत्यंत सुंदर एवं सार्थक !! आपको बधाई।
ReplyDeleteसभी कविताएँ बहुत भावपूर्ण एवं रोचक,मन को लुभाती हुई!
ReplyDeleteआप दोनों को हार्दिक बधाई सुरंगमा जी एवं प्रीति जी!
~सादर
अनिता ललित
अनिता जी आपको धन्यवाद, बहुत खुशी हुई कि आपको कविताएं पसन्द आई!
Deleteसुरंगमा यादव जी कविता'होना मत तू मन उन्मन',जीवन के द्वंद्वात्मक स्वरूप को अभिव्यक्त करने के साथ सकारात्मक सन्देश देती सुंदर कविता है,वहीं प्रीति अग्रवाल'अनुजा'की कविताएँ -'फरिश्ता'एवम'मुलाकात'भी सकारात्मक भाव बोध की सुंदर,मर्मस्पर्शी कविताएँ हैं।दोनो को बधाई।
ReplyDeleteश्रीवास्तव जी आपका धन्यवाद, आपकी टिप्पणी अपने आप में ही एक बहुत महत्वपूर्ण प्रतिसार होती है,आपका बहुत बहुत आभार!
Deleteलाएँगी सुख के मणिगण
ReplyDeleteचलो आज खुद से, मुलाकात कर लें!
वाह ! सभी रचनाएँ सुंदर
सुरंगमा जी एवं प्रीति जी को हार्दिक अभिनन्दन
पूर्वा जी बड़ा अच्छा लगता है जब कोई आपकी रचना का आनन्द लेता है। आपका आभार!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (12-09-2019) को "शतदल-सा संसार सलोना" (चर्चा अंक- 3456) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर प्रणाम शास्त्री जी, मेरे छोटे से प्रयास को इतना मान और अपनी चर्चा में स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
Deleteसुन्दर कविताएँ और सुन्दर चित्र!प्रीति जी बहुत-बहुत बधाई आपको। उत्साह वर्धन के लिए सभी का हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteसुंदर सकारात्मक कविताएं और खूबसूरत चित्र। सुरंगमा और प्रीति जी को बधाई।
ReplyDeleteभावना सक्सैना
आपके स्नेह के लिए दोगुना धन्यवाद सुरंगमा जी, भावना जी। आपको पता है ये चित्र डिजिटल हैं,मैंने अपने फ़ोन की छोटी सी स्क्रीन पर अपनी उंगली से बनाये हैं!बड़ा ही रोचक अनुभव था।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सकारात्मक कविताएँ | बहुत बहुत बधाई सुरंगमा और प्रीति जी को...|
ReplyDeleteसुरंगमा जी और प्रीति जी,
ReplyDeleteआप दोनों की रचनाएँ बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण हैं. आप दोनों को बधाई.
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएँ...सुरंगमा जी, प्रीति जी आप दोनों को बहुत बधाई।
ReplyDeleteप्रियंका जी, जेन्नी जी और कृष्णा जी, आप सब का तहे दिल से शुक्रिया!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुरंगमा जी और प्रीती जी आप दोनों को सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteसुरंगमा जी और प्रीति जी,आप दोनों की रचनाएँ बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण है ,आप दोनों को हृदय-तल से बधाई !!
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