1-मातृभाषा
सत्या शर्मा 'कीर्ति'
अकसर अपनी
अकसर अपनी
आंतरिक तृप्ति के पलों में
बो देती हूँ अपनी भावनाओं के कोमल बीज
जहाँ निकलते हैं शब्दों के नाज़ुक कोमल-से फूल
बो देती हूँ अपनी भावनाओं के कोमल बीज
जहाँ निकलते हैं शब्दों के नाज़ुक कोमल-से फूल
उन्हें हौले से तोड़कर
सजाती हूँ पन्नो के ओजस्वी
कंधों को
वर्णों के रेशमी धागों को
बाँधती हूँ कलम की सशक्त कलाई पर
वर्णों के रेशमी धागों को
बाँधती हूँ कलम की सशक्त कलाई पर
और छंदों की नावों
संग घूम आती हूँ
गीतिका की लहरों
पर
जहाँ मात्राओं
की अनगिनत उर्मियाँ
देती है जन्म
किसी भावुक सी कविता को।
तब अनायास ही खिलखिला
पड़ते हैं हजारों अक्षर
दीपावली के जगमगाते जीवंत दियों-जैसे
तब मेरे मन के पायदान से
उतर आते हैं कदम-दर-कदम
किसी देव पुत्र-से कहानियों के अनेक चरित्र
जो ले जाते हैं मुझे
तब अनायास ही खिलखिला
पड़ते हैं हजारों अक्षर
दीपावली के जगमगाते जीवंत दियों-जैसे
तब मेरे मन के पायदान से
उतर आते हैं कदम-दर-कदम
किसी देव पुत्र-से कहानियों के अनेक चरित्र
जो ले जाते हैं मुझे
किसी उपन्यास की खूबसूरत
वादियों में
तब मैं और भी हो जाती हूँ समृद्ध
तब मैं और भी हो जाती हूँ समृद्ध
जब सुसज्जित सी व्याकरणमाला
करती है मंगलाचरण
हमारी मातृभाषा का
और फिर सौंदर्य से जगमगाती
हमारी तेजस्वी हिंदी
करती है पवित्र हमारी जिह्वा को
और फिर सौंदर्य से जगमगाती
हमारी तेजस्वी हिंदी
करती है पवित्र हमारी जिह्वा को
करोड़ों हृदयों को करती है आनन्दित
और देती है आशीष हमें
हिन्दी भाषी होने का।
--0--
और देती है आशीष हमें
हिन्दी भाषी होने का।
--0--
-0-
2-भिगोने
के बहाने
डॉ. पूर्वा शर्मा
1.
चलो माना कि सारी ख़ताएँ मेरी,
सजा के बहाने ही सही
तुम एक बार तो रूबरू होते।
2.
कई दिनों से मुलाकात नहीं,
सोचा आज शब्दों से ही छू लूँ।
3.
समझता नहीं ये नादाँ दिल कि तू यहाँ नहीं है मौजूद
तुझसे मिलने की ज़िद पर अड़ा, ढूँढे तुझमें खुद का वजूद।
4.
न कोई आहट, न कोई महक
फिर भी आँखें करती इंतज़ार
हो रहा मन हरपल बेक़रार।
5.
सब कुछ तो छीन ले गए,
उपहार में इंतज़ार दे गए.
6.
हर बार छूकर चले जाते
क्यों नहीं ठहर जाते
तुम समुद्री लहरों से मनचले
मैं किनारे की रेत-सी बेबस।
7.
इश्क़-सौदा... बड़ा महँगा पड़ा
वो दिल भी ले उड़ा,
बेचैनी देकर फिर ना मुड़ा।
8.
बड़ी कमाल
हमारी गुफ़्तगू
बिन सुने, बिन कहे
सदियों तक चली।
9.
ये बूँदें भी कमाल हैं ना?
भिगोने के बहाने तुझे आसानी से छू गई.
10.
मुझे तो ये बारिश भी तेरे प्रेम की तरह लगती है
थोड़ी-सी बरस कर, बस तड़पा और तरसा जाती है।
11.
तेरे बिन ना जाने ये राहे कहाँ ले जाएँगी
बस इतनी दुआ है कि इन राहों कि मंज़िल तू ही हो।
12.
कितना तड़पाओगे
बारहमासा तो बीत चला
ये बताओ तुम कब आओगे?
-0-
सत्या जी आपके भाव 'मधुरं', आपकी रचना "मधुरं", और हिंदी भाषा तो है ही "मधुरं"। बहुत सुंदर, आपको बधाई!
ReplyDeleteपूर्वा जी, हमेशा की तरह, बहुत ही मनभावन! तुम समुद्री लहरों से मनचले, मैं किनारे की रेत सी बेबस....!
बहुत बहुत धन्यवाद प्रीति जी 🌹🙏🏻
Deleteबहुत सुन्दर पूर्वा जी 💐😊
ReplyDeleteमेरी कविता को स्थान देने के ये बहुत - बहुत धन्यवाद भैया जी 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteपूर्व जी बहुत ही सुंदर सृजन किया है आपने । बहुत सारी बधाई 🌹🌹
और छंदों की नावों संग घूम आती हूँ. गीतिका की लहरों पर। वाह!
ReplyDeleteसुंदर बिम्बों की छटा बिखेरती कविता।बधाई सत्या जी।
ये बूँदें भी कमाल हैं न
ReplyDeleteभिगोने के बहाने तुझे छू गईं । बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता।बधाई पूर्वा जी।
सत्या जी बहुत सुन्दर भावपूर्ण कविता है। पूर्वा जी गजब की भावुकता और कोमलता है आपकी रचनाओं में ।आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteसत्या जी ने हिन्दी पर बहुत भावपूर्ण कविता लिखी है, बधाई आपको.
ReplyDeleteपूर्वा जी की छोटी छोटी रचनाएँ बड़ा बड़ा संसार रच गई है, बधाई आपको.
सत्या शर्मा एवं पूर्वा शर्मा दोनों रचनाये बड़ी ही सामयिक और भावपूर्ण हैं | सत्या जी का हिंदी के प्रति अनुराग का अपनी कल्कपना से जो चित्रण किया अत्यंत ही सुंदर है | मेरी हार्दिक शुभकामनाएं -श्याम त्रिपाठी -हिंदी चेतना
ReplyDeleteसत्या जी बहुत ही सुंदर रचना ... हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमुझे प्रोत्साहित करने के लिए आप सभी का हृदयतल से आभार ।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए काम्बोज सर का बहुत-बहुत धन्यवाद ।
सभी हिन्दी दिवस की बधाइयाँ
सत्या जी और पूर्वा जी दोनों की रचनाएँ भावपूर्ण और सुंदर।
ReplyDeleteभावना सक्सैना
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ReplyDeleteसत्या जी.. हिन्दी के सौन्दर्य का बोध कराती, गौरवान्वित करती सुंदर कविता हेतु बहुत बधाई आपको!
ReplyDeleteपूर्वा जी, क्या बात है! प्रेम में मिले दर्द का अपना ही आनंद होता है! बहुत सुंदर रचनाएँ सभी! बहुत बधाई आपको!
~सादर
अनिता ललित
ReplyDeleteसत्या जी और पूर्वा जी दोनों की ही रचनाएँ बहुत सुन्दर व भावपूर्ण हैं l बहुत- बहुत बधाई आप दोनों रचनाकारों को !!
सत्या जी हिंदी पर आपकी बहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteपूर्वा जी बहुत सुंदर छोटी छोटी रचनाएँ... छोटी पर बड़ी
बहुत मनभावन रचनाएँ, हार्दिक बधाई
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