Thursday, August 18, 2011
सन्देसे भीगे [ताँका ]
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
[ कुबेर ने अपनी राजधानी अलकापुरी से यक्ष को निर्वासित कर दिया था ।यक्ष रामगिरि पर्वत पर चला आया ।वहाँ से मेघों के द्वारा यक्ष अपनी प्रेमिका को सन्देश भेजता है । महाकवि कालिदास ने इसका चित्रण 'मेघदूत' में किया है । मैंने ये सब प्रतीक लिये हैं। ]
1
बिछी शिलाएँ
तपता है अम्बर
कण्ठ भी सूखा
पथराए नयन
घटा बन छा जाओ
2
बरसे मेघा
रिमझिम सुर में
साथ न कोई
सन्नाटे में टपकें
सुधियाँ अन्तर में
बच्चे -सा मन
छप-छप करता
भिगो देता है
बिखराकर छींटे
बीती हुई यादों के
4
कोई न आए
इस आँधी -पानी में
भीगीं हवाएँ
हो गईं हैं बोझिल
सन्देसा न ढो पाएँ
5
यक्ष है बैठा
पर्वत पर तन्हा
मेघों से पूछे -
अलकापुरी भेजे
सन्देस कहाँ खोए ?
6
कुबेर सदा
निर्वासित करते
प्रेम -यक्ष को
किसी भी निर्जन में
सन्देस सभी रोकें
7
छीना करते
अलकापुरी वाले
रामगिरि पे
निर्वासित करके
प्रेम जो कर लेता
8
सन्देसे भीगे
प्रिया तक आने में
करता भी क्या
मेघदूत बेचारा
पढ़करके रोया
कोमल मन
होगी सदा चुभन
बात चुभे या
पग में चुभें कीलें
मिलके आँसू पी लें
वाह भाई काम्बोज जी बहुत सुंदर सृजन है सभी तांका उत्तम भाव समाये हैं |विशेषकर संदेसे भीगे..... अति सुंदर भाव | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार सविता अग्रवाल जी
Deleteवाह,यक्ष की मनःस्थितियों को अभिनव ढंग से चित्रित किया है आपने ,सभी ताँका अनुपम....'कुबेर सदा/निर्वासित करते/प्रेम यक्ष को...अति सुंदर भाई साहब।हार्दिक बधाई।
ReplyDelete्हृदय से आभार बन्धुवर डॉ शिवजी श्रीवास्तव जी
Deleteवाह, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुंदर भाव लिए अत्यत्तुम सृजन।
ReplyDeleteउम्दाभिव्यक्ति !!!
ReplyDeleteवाह!बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबच्चे-सा मन, संदेस कहाँ खोए ?,पढ़कर के रोया...... एक से बढ़कर एक .....सभी ताँका बहुत सुन्दर |हार्दिक बधाइयाँ
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ReplyDelete'मेघदूत'का आधुनिक चित्रण!कितना सरस और मनभावन!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-07-2019) को "नदारत है बारिश" (चर्चा अंक- 3406) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया तांका। भैया सादर अभिवादन
ReplyDeleteअनिता मण्डा, रत्नाकर दीदी जी, प्रीति अग्रवाल, डॉ पूर्वा शर्मा, सविता मिश्रा, डॉ सुरंगमा यदव,डॉ पूर्णिमा राय आप सभी का हृदय से आभार 1 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
ReplyDeleteआपकी लेखनी सदैव निःशब्द कर देती है. बहुत सुन्दर भाव. सभी ताँका बेहद खूबसूरत.
ReplyDeleteयक्ष है बैठा
पर्वत पर तन्हा
मेघों से पूछे -
अलकापुरी भेजे
सन्देस कहाँ खोए ?
भावपूर्ण ताँका के लिए बहुत बहुत बधाई भैया.
एक से बढ़कर एक तांका।
ReplyDeleteआपकी लेखनी को नमन।
सादर
भावना सक्सैना
अति सुंदर अभिव्यक्ति, वाह!...हार्दिक बधाई भाईसाहब।
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ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी...| दिल से दिल तक गए ये भाव...| हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteअभिनंदन
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...आपकी लेखनी को सादर नमन भैयाजी !!
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