पथ के साथी

Tuesday, July 23, 2019

सन्देसे भीगे

Thursday, August 18, 2011

सन्देसे भीगे [ताँका ]


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

[ कुबेर ने अपनी राजधानी अलकापुरी से यक्ष को निर्वासित कर दिया था ।यक्ष रामगिरि पर्वत पर चला आया ।वहाँ से मेघों के द्वारा यक्ष अपनी प्रेमिका को सन्देश भेजता है । महाकवि कालिदास ने इसका चित्रण 'मेघदूत' में किया है । मैंने ये सब प्रतीक  लिये हैं। ]
1
बिछी शिलाएँ
तपता  है अम्बर
कण्ठ भी सूखा
 पथराए नयन
घटा बन छा जाओ
2
बरसे मेघा
रिमझिम सुर में
साथ न कोई
सन्नाटे में टपकें
सुधियाँ अन्तर में
3
बच्चे -सा मन
छप-छप करता
भिगो देता है
बिखराकर छींटे
बीती हुई यादों के
4
कोई न आए
इस आँधी -पानी में
भीगीं हवाएँ
हो गईं हैं बोझिल
सन्देसा न ढो पाएँ
5
यक्ष है बैठा
पर्वत पर तन्हा
मेघों से पूछे -
अलकापुरी भेजे
सन्देस कहाँ खोए ?
6
कुबेर सदा
निर्वासित करते
प्रेम -यक्ष को
किसी भी निर्जन में
सन्देस सभी रोकें
7
छीना करते
अलकापुरी वाले
रामगिरि  पे
निर्वासित करके
प्रेम जो कर लेता
8
सन्देसे भीगे
प्रिया तक आने में
करता भी क्या
मेघदूत बेचारा
पढ़करके रोया
9
कोमल मन
होगी सदा चुभन
बात चुभे या
पग में चुभें कीलें
मिलके आँसू पी लें

22 comments:

  1. वाह भाई काम्बोज जी बहुत सुंदर सृजन है सभी तांका उत्तम भाव समाये हैं |विशेषकर संदेसे भीगे..... अति सुंदर भाव | हार्दिक बधाई |

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    1. बहुत-बहुत आभार सविता अग्रवाल जी

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  2. वाह,यक्ष की मनःस्थितियों को अभिनव ढंग से चित्रित किया है आपने ,सभी ताँका अनुपम....'कुबेर सदा/निर्वासित करते/प्रेम यक्ष को...अति सुंदर भाई साहब।हार्दिक बधाई।

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    1. ्हृदय से आभार बन्धुवर डॉ शिवजी श्रीवास्तव जी

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  3. वाह, बहुत सुंदर।

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  4. सुंदर भाव लिए अत्यत्तुम सृजन।

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  5. उम्दाभिव्यक्ति !!!

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  6. वाह!बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. बच्चे-सा मन, संदेस कहाँ खोए ?,पढ़कर के रोया...... एक से बढ़कर एक .....सभी ताँका बहुत सुन्दर |हार्दिक बधाइयाँ

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  9. 'मेघदूत'का आधुनिक चित्रण!कितना सरस और मनभावन!

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  10. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-07-2019) को "नदारत है बारिश" (चर्चा अंक- 3406) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  11. बहुत बढ़िया तांका। भैया सादर अभिवादन

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  12. अनिता मण्डा, रत्नाकर दीदी जी, प्रीति अग्रवाल, डॉ पूर्वा शर्मा, सविता मिश्रा, डॉ सुरंगमा यदव,डॉ पूर्णिमा राय आप सभी का हृदय से आभार 1 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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  13. आपकी लेखनी सदैव निःशब्द कर देती है. बहुत सुन्दर भाव. सभी ताँका बेहद खूबसूरत.

    यक्ष है बैठा
    पर्वत पर तन्हा
    मेघों से पूछे -
    अलकापुरी भेजे
    सन्देस कहाँ खोए ?

    भावपूर्ण ताँका के लिए बहुत बहुत बधाई भैया.

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  14. एक से बढ़कर एक तांका।
    आपकी लेखनी को नमन।
    सादर
    भावना सक्सैना

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  15. अति सुंदर अभिव्यक्ति, वाह!...हार्दिक बधाई भाईसाहब।

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  17. बहुत ही मर्मस्पर्शी...| दिल से दिल तक गए ये भाव...| हार्दिक बधाई...|

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  18. सुंदर सृजन
    अभिनंदन

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  19. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...आपकी लेखनी को सादर नमन भैयाजी !!

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