पथ के साथी

Sunday, June 16, 2019

910-पितृ-दिवस


 1- शशि पाधा  
याद आता है
1
गिने थे अनगिन तारे 
गोदी में बैठे तुम्हारे 
हर रात ढूँढा ध्रुव तारा 
तुम्हारी तर्जनी के सहारे 
तुमसे ही जाने थे 
दिशाओं के नाम 
फूलों के रंग, पर्वत,पहाड़ 
नदियाँ,सागर देश गुमनाम 
पास थी तुम्हारे 
जादू की छड़ी 
जो हल कर देती थी 
प्रश्न सारे। 
2
याद आता है 
पिता का चश्मा 
जिसे लगाने की 
कितनी ज़िद्द थी मेरी 
और तुम 
केवल मुस्कुराके कहते 
अभी उम्र नहीं है तेरी
अब रोज़ लगाती हूँ चश्मा 
लगता है
आस पास ही हो आप
और---
 चश्मा धुँधला हो जाता है
3
याद आता है 
हर शाम पिता से अधिक 
उनके झोले की प्रतीक्षा करना 
उसी में से पूरे होते थे 
सारे सपने, मनोकामना 
तुमने कभी नहीं दुखाया
बालमन 
उसमें थी निधि स्नेह की 
त्याग का अपरिमित धन। 
4
कथनी से करनी बड़ी 
तुम्हारी सीख
है धरोहर 
पीढ़ी -दर- पीढ़ी 
दीप स्तम्भ सी 
पथ प्रदर्शक। 
5
मैंने न छुआ आकाश कभी 
और न मापी सागर की गहराई 
न कभी समेटी बरगद की छाया 
न देखी हिमालय की ऊँचाई 
मैंने तो बस अपने पिता में
इन सब को समाहित होते देखा है। 
-0-

2-मुकेश बाला
आज याद आया

आज हर संतान में
श्रवण कुमार समाया है
अवहेलना का शिकार
पिता आज याद आया है
उसने तो कन्धों पर लादा था
हमने स्टेटस यान में बिठाया है
तीर्थ यात्रा हुई पुरानी
फेसबुक का भ्रमण कराया है
सबके ट्विटर ब्लॉग पर
आज तो बस बापू ही छाया है
पाश्चात्य का चढ़े न रंग
भारतीयता को अपनाया है
फादर्स डे को भुलाकर
हमने पितृ-दिवस मनाया है
परम्परा से कटकर ही तो
ये आधुनिक युग कहलाया है
-0-

12 comments:

  1. बहुत सुंदर.. मन छूने वाली रचनाएं। बधाइयां

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  2. मन पर सुन्दर छाप छोडती पिता पर रचनाएँ, बधाई शशि जी.
    आज के समय में बुजुर्गों की यही स्थिति, सही कहा मुकेश बाला जी.

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  3. शशि जी ,
    आपकी रचना पूज्यनीय पिता की स्मृतियों से भरी हुयी बड़ी ही सामयिक और सार्थक है | प्रत्येक शब्द में लेखिका के व्यक्तितत्व की छाप है | इन पंक्तियों ने मुझे अपना बचपन याद करा दिया| बड़ी ही सजीव और सटीक रचना है | श्याम -हिंदी चेतना

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-06-2019) को "बरसे न बदरा" (चर्चा अंक- 3370) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. पिता की स्मृतियों से पूरित शशि जी की भावप्रणव सुन्दर कविता है । मुकेश बाला जी की कविता समसामयिक कविता है ।दोनों सार्थक अभिव्यक्तियों के लिये बधाई ।

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  6. आदरणीय शशि जी की भावपूर्ण क्षणिकाएँ व मुकेशबाला की समसामयिक यथार्थपरक कविता अच्छी लगी।
    आप दोनों को बधाई व हाप्दिक शुभकामनाएँ।

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  7. असाधारण मन को छुती अनुपम रचनाऐँ ।

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  8. पितृ दिवस पर रची सुन्दर रचनाएं हैं शशि जी मन एक बार फिर पुरानी यादों में खो गया और पिताजी के साथ बिताये बचपन के दिन याद आ गए सच में उनकी सीख दीप स्तम्भ सी आज भी साथ है |आपको और मुकेश बाला जी को हार्दिक बधाई |

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  9. शशि जी बहुत सुंदर भावपूर्ण , मर्मस्पर्शी कविता। बचपन की स्मृतियों मन को भिगो गईं ।हार्दिक बधाई
    मुकेश बाला जी सटीक समसामयिक सार्थक कविता। सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

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  10. पिता को समर्पित सभी रचनाएँ...अत्यंत भावपूर्ण!
    हार्दिक बधाई आ. शशि दीदी एवं मुकेश बाला जी!!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  11. मन को छूने वाले सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाई आ.शशि जी एवं मुकेश बाला जी !!

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