चिन्तन –मंथन
शशि पाधा
गाँव- गाँव अब शहर
हुए
दरिया सिमटे नहर हुए
सागर- चिन्ता घोर
न जाने
क्या होगा।
खुली छत,तारों से बातें
घुली चाँदनी,झिलमिल रातें
रह गई दूर की दौड़
न जाने क्या होगा !
सूरज का रथ स्वर्ण- जड़ा
दूर सड़क के मोड़ खड़ा
खिड़की बैठी भोर
न जाने क्या होगा !
गोधूलि अब धूल-भरी
छाया :रोहित काम्बोज |
बगिया क्यारी शूल -भरी
उड़ता फिरता शोर
न जाने क्या होगा !!
जंगल सब बियाबान हुए
पंछी सब परेशान हुए
कहाँ पे नाचें मोर
न जाने क्या होगा !!
ताल
तलैया सूखे-से
बरगद
बाबा रूखे- से
भूखे
-प्यासे
ढोर
न
जाने क्या होगा !!
भारत से सुदूर इस पाताल पुरी में (कैनेडा) में आपने मेरे बचपन की गाँव की यादें ताज़ा कर दी | कहाँ क्या हो गया , अब आगे जाने क्या होगा | आपकी रचना ने मेरी आँखें भीगी कर दी | बहुत ही सुन्दरता से आपने ग्राम की सुन्दरता का चित्रंण किया| आपकी कलम में चित्रकारिता है | आपको हृदय से शुभकामनाएं! श्याम हिंदी चेतना
ReplyDeleteग्राम्यान्चल का सुन्दर चित्रण ।कहाँ पे नाचे मोर....वाह!क्या बात है ।बधाई आपको ।
ReplyDeleteमन सच में कभी कभी सोचता है कि अब आगे और क्या होगा...?
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी और यथार्थ को दर्शाती रचना है, मेरी बधाई
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-06-2019) को "हमारा परिवेश" (चर्चा अंक- 3359) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
यथार्थ को दर्शाती बहुत सुन्दर रचना...बहुत-बहुत बधाई आपको !
ReplyDeleteयथार्थ को दर्शाती बहुत सुन्दर रचना...बहुत-बहुत बधाई आपको !
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर रचना...हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDeleteजैसा समय आ गया है, न जाने क्या होगा. बहुत सुन्दर रचना, बधाई आपको.
ReplyDeleteग्राम का बहुत सुन्दर चित्रण आपकी कविता में पढने को मिला हार्दिक बधाई शशि जी |
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