पथ के साथी

Saturday, April 6, 2019

समय की नदी

 2-डॉ.कविता भट्ट

1

 कसमसाकर सो जाना

        उस स्पर्श से लिपटकर।

धीरे से कुछ कह जाना

       वो धड़कनों में सिमटकर।

हर अनुभव अनुपम था-

           हर उपमा भी निराली।

प्रेयसी की आँखों को संज्ञा

           ब्रह्माण्ड की; दे डाली।

प्रेम क्या है- नहीं पता

           किन्तु प्रश्न गम्भीर है।

प्रियतमा की आँखों में-

           ब्रह्माण्ड है या नीर है?

प्रेमी आँखों से न उबर सका

       प्रेयसी ब्रह्माण्ड में ठहरी है।

प्रेम तटों- सा चुप है खड़ा

       समय की नदी भी गहरी है।

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