रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
किताबें जलाने से जली कब कहानियाँ।
रोक सके पहाड़ कब नदी की रवानियाँ।
सुबह या शाम इक दिन जाना है हमें भी
छोड़ जाएँगे पीछे कुछ तो निशानियाँ।
2
घाव सारे सी लूँगा मैं
ज़हर दे दो पी लूँगा मैं
दूँगा दुआएँ सदा तुझे
यादें साथ जी लूँगा मैं।
3
जग की सब नफ़रत मैं ले लूँ
तुझको केवल प्यार मिले।
हम तो पतझर के वासी हैं
तुझको सदा बहार मिले।
सफ़र हुआ अपना तो पूरा
चलते चलते शाम हुई
तुझको हर दिन सुबह मिले
नील गगन -सा प्यार मिले।
1
किताबें जलाने से जली कब कहानियाँ।
रोक सके पहाड़ कब नदी की रवानियाँ।
सुबह या शाम इक दिन जाना है हमें भी
छोड़ जाएँगे पीछे कुछ तो निशानियाँ।
2
घाव सारे सी लूँगा मैं
ज़हर दे दो पी लूँगा मैं
दूँगा दुआएँ सदा तुझे
यादें साथ जी लूँगा मैं।
3
जग की सब नफ़रत मैं ले लूँ
तुझको केवल प्यार मिले।
हम तो पतझर के वासी हैं
तुझको सदा बहार मिले।
सफ़र हुआ अपना तो पूरा
चलते चलते शाम हुई
तुझको हर दिन सुबह मिले
नील गगन -सा प्यार मिले।
दिल छू लेने वाला भावपूर्ण सृजन। अशेष शुभकामनाएँ आपके लिए।
ReplyDeleteसादर,
भावना सक्सैना
हृदयस्पर्शी... बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteसादर नमन एवं हार्दिक बधाइयाँ गुरुवर
प्रेम के उदात्त भावों से सुसज्जित रचना सुंदर रचना।
ReplyDeleteदिल को छूती हुई प्रेम भाव से ओतप्रोत बहुत सुंदर रचनाएँ
ReplyDeleteउत्साह वर्धन के लिए आप सबका आभार।
ReplyDeleteकाम्बोज