2- दो कुण्डलियाँ,
रमेशराज
रमेशराज
1
बोतल के सँग बाँटते, फिरें करारे नोट
नेताजी को चाहिए, मतदाता का वोट।
मतदाता का वोट, सभी से मीठा बोलें
तज अपराधी-रूप, सभा में अमृत घोलें
सबसे जोड़ें हाथ, कहें चुपके से पल-पल
हमें दीजिये वोट, लीजिए गड्डी-बोतल।
2
दीखे है हर ओर अब, अजब तमाशा हाय
हाथी लेकर साइकिल, सरपट दौड़ लगाय।
सरपट दौड़ लगाय, कमल की कला निराली
पीट रहे हैं भक्त, सभा में जमकर ताली।
चतुराई के पेंच, हाथ ने भी कुछ सीखे
राजनीति की भाँग, पिए मतदाता दीखे।
-0-
वाह !
ReplyDeleteहार्दिक बधाइयाँ
वाह रमेश जी बढ़िया लिखा है हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत सामायिक और बढ़िया...हार्दिक बधाई
ReplyDeleteएकदम सटीक । बहुत बढिया।बधाई रमेश जी
ReplyDeleteराजनीति का सच! बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई रमेश जी!
~सादर
अनिता ललित