डॉ. पूर्वा शर्मा
1.
जबसे
तुझसे हूँ मिली
मैं खुद से ना मिली ।
2.
महकती हैं खुशियाँ
ज़िन्दगी के हर कोने में
बस महसूस कीजिए ।
3.
हौले-हौले दरारों से
रिस रही थी खुशियाँ
सहसा ज़िंदगी का दर खोल
यूँ बिन कुछ बोल
ये ज़िद्दी चिपकू दुःख
आ ही धमके ।
4.
तुम्हारे इंतज़ार में
बेइंतहा बेकरारी
सुकूँ भी साथ में
कि अब मुलाकात
तय है हमारी ।
5.
साल
दर साल, बीतते
गए
पर वो लम्हा नहीं बीता
जो तेरे साथ था बीता
तू मेरे ख़्वाबों में जीता ।
6.
तू
दफन है मेरे सीने में कुछ इस तरह
कि
साँसें चल रही है सिर्फ तेरे ही दम पर ।
7.
वो
अपनी तड़प को लफ़्ज़ों में बयाँ कर चले
हमें
ना हर्फ़ मिले, ना
आँखों ने साथ दिया ।
8.
तुम
पर कौन-सा रंग डालूँ कान्हा ?
मैं
तो खुद ही रँगी हूँ तुम्हारे रंग में ।
9.
रात
भर नींद नदारद
कभी
मिलने की बेसब्री में
कभी
मिलन के सुकूँ में ।
10.
दिल
से महफूज़ कोई जगह नहीं,
देख
लो ... तुम आज तक महफूज़ हो यहाँ ।
11.
तू
साथ है तभी तो चल रही है ये ज़िंदगी
ये
बात और है कि तू सिर्फ ख्यालों में साथ है ।
12.
थमता
नहीं
किसी
के चले जाने से
ये
गतिमान जीवन,
बस
कटने लगता है
बेरंग, बेजान, बेमतलब,
फीका
एवं निराधार-सा ।
दिल से महफूज़ कोई जगह नहीं ..... बहुत प्यारी बात कही है डॉ पूर्वा जी हार्दिक बधाई स्वीकारें |दिल को छूने वाली रचना है |
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