पथ के साथी

Monday, April 8, 2019

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प्रो. इंदु पाण्डेय खंडूड़ी 


मुझे इतिहास रचना था
मुझे नीर भरी,
दुःख की बदली बन,
अपने परिचय को न तो
समेट लेना था,
और ना ही 

अपने इतिहास की
 इतिश्री करनी थी।
मुझे तो अपने एहसास के,
दरख़्त पर संघर्ष की,
एक गाथा लिखनी थी।
बदली सा मचलना था,
घनघोर घटाओं की 
अलमस्त छाँव में ठहरना था,
बारिश की बूदों सा गिरना था।
अनायास ही अभेद मन को
सराबोर भिगोना था,
नीर बनकर सड़कगली से
गुजरना था।
झरना बन नदी में
और नदी बन समंदर में
मिल विस्तृत होना था।
फिर,
दर्द से जमना था,
बेचैनी की ऊष्मा से उबलना था,
फिर बेशक्ल आसमान मे
उड़ना था और,
इस चक्र का एक
इतिहास बनाना था,
कुछ निशां छोड़ जाएँ,
वो इतिहास रचना था।

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