साँझ खिली है- अनिता ललित
1
तपती धरा पे
बूँदों जैसे,
क्यों तुम आए,
कहाँ गए?
2
मेघ-मल्हार के
गीतों जैसी,
गूँज रही मैं
सदियाँ बीती।
3
बहती हूँ
ख़ामोश नदी सी,
कंकड़ बन क्यों
आ गिरते हो?
4
झील बनी हैं
आँखें मेरी,
चाँद के जैसे
तुम ठहरे हो!
5
रात हो गई
फिर से भारी,
खुली यादों की
बंद अलमारी।
6
मुस्काऊँगी
खिलूँगी, मेरा वादा!
फूल -सा चेहरा
ओस का पहरा।
7
सहरा जीवन
तुम हो मंज़िल,
पाँव थके
न छाले फटते।
8
साँझ खिली है
दूर गगन में,
माँग पे मेरी
अधर तुम्हारे।
-0-
(26/03/2019, 19.40)
1
तपती धरा पे
बूँदों जैसे,
क्यों तुम आए,
कहाँ गए?
2
मेघ-मल्हार के
गीतों जैसी,
गूँज रही मैं
सदियाँ बीती।
3
बहती हूँ
ख़ामोश नदी सी,
कंकड़ बन क्यों
आ गिरते हो?
4
झील बनी हैं
आँखें मेरी,
चाँद के जैसे
तुम ठहरे हो!
5
रात हो गई
फिर से भारी,
खुली यादों की
बंद अलमारी।
6
मुस्काऊँगी
खिलूँगी, मेरा वादा!
फूल -सा चेहरा
ओस का पहरा।
7
सहरा जीवन
तुम हो मंज़िल,
पाँव थके
न छाले फटते।
8
साँझ खिली है
दूर गगन में,
माँग पे मेरी
अधर तुम्हारे।
-0-
(26/03/2019, 19.40)
सुंदर सृजन .....
ReplyDeleteअनिता जी बधाइयाँ
वाह शब्द शब्द भावमय करता हुआ ... इस अनुपम सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteभावमाला, उत्कृष्ट सृजन हेतु हार्दिक बधाई अनिता जी। मेरी शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनाप्रधान सृजन।दिली बधाई अनिता जी।
ReplyDeleteवाह उत्कृष्ट सृजन है हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं ।बहुत-बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत क्षणिकाएँ. बहुत बधाई.
ReplyDeleteझील बनी हैं
ReplyDeleteआँखें मेरी,
चाँद के जैसे
तुम ठहरे हो!
kya baat hai bahut sunder
rachana
सभी क्षणिकाएँ अत्युत्तम ।बधाई अनिता जी।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ खूबसूरत चित्र खींच रही हैं । बधाई प्रिय अनिता ।
ReplyDeleteप्रोत्साहन हेतु आप सभी का ह्रदयतल से आभार !!!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
सुंदर क्षणिकाएँ अनिता जी। बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएँ...| हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteसुंदर सृजन झील बनी हैं
ReplyDeleteआंखें मेरी
चाँद के जैसे
तुम ठहरे हो
क्या बात है बधाई
आप सभी का हृदयतल से आभार!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित