पथ के साथी

Friday, March 29, 2019

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साँझ खिली है- अनिता ललित
1
तपती धरा पे
बूँदों जैसे,
क्यों तुम आए,
कहाँ गए?
2
मेघ-मल्हार के
गीतों जैसी,
गूँज रही मैं
सदियाँ बीती।
3
बहती हूँ
ख़ामोश नदी सी,
कंकड़ बन क्यों
आ गिरते हो?
4
झील बनी हैं
आँखें मेरी,
चाँद के जैसे
तुम ठहरे हो!
5
रात हो गई
फिर से भारी,
खुली यादों की
बंद अलमारी।
6
मुस्काऊँगी
खिलूँगी,  मेरा वादा!
फूल -सा चेहरा
ओस का पहरा।
7
सहरा जीवन
तुम हो मंज़िल,
पाँव थके
न छाले फटते।
8
साँझ खिली है
दूर गगन में,
माँग पे मेरी
अधर तुम्हारे।
-0-

(26/03/2019, 19.40)


15 comments:

  1. सुंदर सृजन .....
    अनिता जी बधाइयाँ

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  2. वाह शब्द शब्द भावमय करता हुआ ... इस अनुपम सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई

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  3. भावमाला, उत्कृष्ट सृजन हेतु हार्दिक बधाई अनिता जी। मेरी शुभकामनाएँ।

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  4. बहुत सुंदर भावनाप्रधान सृजन।दिली बधाई अनिता जी।

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  5. वाह उत्कृष्ट सृजन है हार्दिक बधाई |

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  6. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं ।बहुत-बहुत बधाई ।

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  7. बहुत खूबसूरत क्षणिकाएँ. बहुत बधाई.

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  8. झील बनी हैं
    आँखें मेरी,
    चाँद के जैसे
    तुम ठहरे हो!
    kya baat hai bahut sunder
    rachana

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  9. सभी क्षणिकाएँ अत्युत्तम ।बधाई अनिता जी।

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  10. सभी क्षणिकाएँ खूबसूरत चित्र खींच रही हैं । बधाई प्रिय अनिता ।

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  11. प्रोत्साहन हेतु आप सभी का ह्रदयतल से आभार !!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  12. सुंदर क्षणिकाएँ अनिता जी। बधाई

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  13. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ...| हार्दिक बधाई...|

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  14. सुंदर सृजन झील बनी हैं
    आंखें मेरी
    चाँद के जैसे
    तुम ठहरे हो
    क्या बात है बधाई

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  15. आप सभी का हृदयतल से आभार!

    ~सादर
    अनिता ललित

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