पथ के साथी

Tuesday, February 5, 2019

875-मेरा चाँद अकेला है।

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


सूने अम्बर में मेरा चाँद अकेला है।
हिचकी ले रही हवा ये कैसी बेला है।
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
उलझन में हरदम जीवन  छूटा मेला है।

सन्देश सभी खोए,किस बीहड़ जंगल में
हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।
पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।
पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।

15 comments:

  1. बहुत ही दुःख भरी रचना।

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  2. भावपूर्ण सृजन।

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    1. प्रतिकूल हालातों और वर्तमान की आपाधापी से आहत और विवश
      मन की कलात्मक अभिव्यक्ति।

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    2. डॉ हृदय नारायण उपाध्याय

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  3. पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
    बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।
    sunder panktiyan
    rachana

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  4. हृदयस्पर्शी सृजन एवं उत्कृष्ट रचना आदरणीय सर!!

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  5. हृदयस्पर्शी सुंदर रचना।

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  6. भावपूर्ण सृजन भैया जी !

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  7. मर्मस्पर्शी बहुत उम्दा रचना।

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  8. आप सभी संवेदनशील साथियों का बहुत बहुत आभार । आपकी आत्मीयता मेरी शक्ति है।

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  9. मार्मिक, संवेदनशील, और भावसंपन्न रचना | बधाई | सुरेन्द्र वर्मा |



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  10. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-01-2019) को "प्रणय सप्ताह का आरम्भ" (चर्चा अंक-3240) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पाश्चात्य प्रणय सप्ताह की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  11. मर्मस्पर्शी रचना, बधाई भैया.

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  12. बहुत भावुक करती हैं ये पंक्तियाँ...हार्दिक बधाई

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  13. सन्देश सभी खोए,किस बीहड़ जंगल में
    हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।...

    हृदय का गहन दुख व्यक्त करती यह कविता साहित्य की दृष्टि से तो बहुत अच्छी है। लेकिन चिंता मे डालने वाली है, अाप तो सदैव सबको सकारात्मक ऊर्जा देते हैं, अाप की कलम से यह रचना.... अाशा करती हूँ सब कुशल मंगल है
    सादर
    मंजु

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