रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सूने
अम्बर में मेरा चाँद अकेला है।
हिचकी ले रही हवा ये कैसी बेला है।
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
हिचकी ले रही हवा ये कैसी बेला है।
आँसू भीगी पलकें, उलझी हैं अब अलकें
आँसू पोछे ,सुलझा दे अब हाथ न सम्बल के
उलझन
में हरदम जीवन छूटा मेला है।
सन्देश
सभी खोए,किस बीहड़ जंगल में
हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।
पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।
पलभर को रुका नहीं आँसू का रेला है ।हूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।
पीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
बीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।
बहुत ही दुःख भरी रचना।
ReplyDeleteभावपूर्ण सृजन।
ReplyDeleteप्रतिकूल हालातों और वर्तमान की आपाधापी से आहत और विवश
Deleteमन की कलात्मक अभिव्यक्ति।
डॉ हृदय नारायण उपाध्याय
Deleteपीड़ाएँ अधरों पर आकरके सोती हैं
ReplyDeleteबीती बातें भी यादों में आ रोती हैं।
sunder panktiyan
rachana
हृदयस्पर्शी सृजन एवं उत्कृष्ट रचना आदरणीय सर!!
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सुंदर रचना।
ReplyDeleteभावपूर्ण सृजन भैया जी !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी बहुत उम्दा रचना।
ReplyDeleteआप सभी संवेदनशील साथियों का बहुत बहुत आभार । आपकी आत्मीयता मेरी शक्ति है।
ReplyDeleteमार्मिक, संवेदनशील, और भावसंपन्न रचना | बधाई | सुरेन्द्र वर्मा |
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (07-01-2019) को "प्रणय सप्ताह का आरम्भ" (चर्चा अंक-3240) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रणय सप्ताह की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मर्मस्पर्शी रचना, बधाई भैया.
ReplyDeleteबहुत भावुक करती हैं ये पंक्तियाँ...हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसन्देश सभी खोए,किस बीहड़ जंगल में
ReplyDeleteहूक- सी उठती है ,रोने को पल पल में।...
हृदय का गहन दुख व्यक्त करती यह कविता साहित्य की दृष्टि से तो बहुत अच्छी है। लेकिन चिंता मे डालने वाली है, अाप तो सदैव सबको सकारात्मक ऊर्जा देते हैं, अाप की कलम से यह रचना.... अाशा करती हूँ सब कुशल मंगल है
सादर
मंजु