डॉ०
कविता भट्ट
घोर रात में भी खनखनाती
रही
पीर में भी मधुर गीत गाती रही ।
लाल-पीली-हरी काँच की चूड़ियाँ
आँसुओं से भरी काँच की चूड़ियाँ ।
उनके दाँव - पेंच में, टूटती रही
ये बिखरी नहीं, भले रूठती रही ।
प्यार में थी मगन काँच की
चूड़ियाँ
खुश रही हैं सदा, काँच की चूड़ियाँ ।
माना चुभी है इनकी प्यारी चमक
ये खोजती नई रोशनी का फ़लक
।
नभ में छाएँगी काँच की चूड़ियाँ
इन्द्रधनुषी सजी काँच की चूड़ियाँ ।
कोई नाजुक इन्हें भूल कर न कहे
इनका ही रंग-रूप रगों में बहे।
सीता राधा-सी काँच की चूड़ियाँ
अनसूया-उर्मिला काँच की चूड़ियाँ ।
-0-
हे०
न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड
वाह, सुंदर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
ReplyDeleteकाँच की चूड़ियों पर बहुत प्यारी खनकती कविता के लिये बधाई लो । सनेह विभा रश्मिप्रभा
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आप सभी का।
ReplyDeleteनाज़ुक चूड़ियों के माध्यम से जीवन के अनुराग और संघर्ष की सरस अभिव्यक्ति।हार्दिक बधाई डॉ कविता भट्ट जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबेहद सुंदर
ReplyDeleteबेहद सुंदर
ReplyDeleteरंग बिरंगी, नाजुक सी खुशियाँ बिखेरती चूड़ियों की तरह ही बेहद मनभावन पंक्तियाँ...हार्दिक बधाई स्वीकारें...|
ReplyDeleteवाह.. बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteवाह कविता भट्ट जी चूड़ियों के खनखन के रूप में नारी के मन की कथा सुना दी ।प्यार पाने पर मनखुशी से खनकने लगता है चूड़ियों की तरह ।और उदासी में भी अपना खनकने का धर्म नहीं भूलती चूड़ियाँ तथा मन ।तभी तो हैं ये सीता राधा सी काँच की चूड़ियाँ ।हर नारी के लिये होती है प्यारी चूड़ियाँ । इस गीत के लिये ढ़ेर सारी बधाई ।
ReplyDeleteएक और भी बधाई साहित्य के क्षेत्र में मिले ‘फ्यूंली कौथिग सम्मान‘ की
बहुत सुन्दर रचना कविता जी ..बहुत बधाई !
ReplyDeleteमेरी ओर से भी बहुत -बहुत बधाई साहित्य के क्षेत्र में मिले सम्मान की !
वाह बहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteहर शेर में चूड़ी की अलग खनक है ... लाजवाब ...
बहुत सुंदर चूड़ियाँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार आप सभी का।
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