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858-खोखला तन
खोखला
तन
डॉ.
सिम्मी भाटिया
खामोश
आँखें
अनगिनत
सवाल
बातें
बेबात
कैसी
उधेड़बुन
होती
बेचैनी
करे
वेदना
भूखा
पेट
सूखे
स्तन
देखे
बचपन
रोता
दिल
खोखला
तन
बचाए
कजरा
सूनी
दुनिया
काँपते
हाथ
सजाए
गजरा
होता
तिमिर
सजे
दुकान
देह -व्यापार ।
-0-
मार्मिक, कम शब्दों में सार्थक लिखा। बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा , बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
क्या कहूँ ? हृदय को स्पर्श करती रचना....
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना ..हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना. .. .. .दिल से बधाई सिम्मी जी !!
ReplyDeleteबहुत प्रभावी रचना
ReplyDeleteमार्मिक रचना कुछ सोचने को मजबूर करती है
ReplyDeleteBahut khub bahut bahut badhai
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