रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
काल की गहरी निशा है
दर्द भीगी हर दिशा है।
साथ तुम मेरा निभाना
नहीं पथ में छोड़ जाना।
काल की गहरी निशा है
दर्द भीगी हर दिशा है।
साथ तुम मेरा निभाना
नहीं पथ में छोड़ जाना।
छोड़ दे जब साथ दुनिया
कंठ
से मुझको लगाना
एक दीपक तुम जलाना।।
गहन है मन का अँधेरा
दूर मीलों है सवेरा।
कारवाँ लूटा किसी ने
नफ़रतों ने प्यार घेरा ।
यहाँ अंधों के नगर में
क्या इन्हें दर्पण दिखाना।
एक दीपक तुम जलाना।।
गहन है मन का अँधेरा
दूर मीलों है सवेरा।
कारवाँ लूटा किसी ने
नफ़रतों ने प्यार घेरा ।
यहाँ अंधों के नगर में
क्या इन्हें दर्पण दिखाना।
एक अकेली स्फुलिंग थी
दावानल बन वह फैली।
थी ऋचा -सी पूत धारा
ईर्ष्या-तपी, हुई मैली।
कालरात्रि का है पहरा
ज्योति बनकर पथ दिखाना।
एक दीपक तुम जलाना।।
-०-
अनुपम, हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर रचना... हार्दिक अभिनंदन
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-10-2018) को "विद्वानों के वाक्य" (चर्चा अंक-3127) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भावपूर्ण उत्म सृजन।
ReplyDeleteबहुत ही गहन भावपूर्ण रचना भैया जी।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
अत्युत्तम , भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteउम्दा भावपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteज्योत से ज्योत जलाना / एक दीपक तुम जलाना | सुंदर और कोमल भाव | बधाई भैया |
ReplyDeleteआप सबकी उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए ह्रदय से आभारी हूँ .
ReplyDeleteEk deepak tum jalana bahut bhavuk kar dene vali marmsparshi rachna kamboj ji aapko hardik badhai..
ReplyDeleteअतिसुन्दर !इतनी प्यारी तथा भावपूर्ण रचना के लिए आपको हृदय -तल से बधाई भैया जी !!
ReplyDeleteआप दोनों का बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है भाई कम्बोज जी अनेक बधाई स्वीकारें |
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत आदरणीय रामेश्वर सर
ReplyDeleteएक सुन्दर गीत के लिए आदरणीय काम्बोज जी को बहुत बधाई
ReplyDelete