1-सीढ़ी
डॉ.सुषमा गुप्ता
सीख तो सकते थे हम भी
ज़माने का चलन
पर ये हम से हो न सका ।
अब लोग ज़मीं नहीं
इंसानों को बिछाते हैं
पैर जमाने के लिए
और सीढ़ियों की कोई अहमियत नहीं
बस चंद लोग चाहिए ,
गिराके खुद को ऊँचा उठाने के लिए ।
-0-
2-दरिया थे हम
मंजूषा मन
दरिया थे हम
मीठे इतने
कि प्यास बुझाते,
निर्मल इतने कि
पाप धो जाते।
अनवरत बहे
कभी न थके
निर्बाध गति से
भागते रहे,
सागर की चाह में
मिलन की आस में
न सोचा कभी
परिणाम क्या होगा।
अपनी धुन में
दुर्गम राहें
सब बाधाएं
सहते रहे हँस के,
और अंत में
अपना अस्तित्व मिटा
जा ही मिले
सागर के गले।
पर हाय!!!
स्वयं को मिटाया
क्या पाया?
ये क्या हाथ आया?
कि
खारा निकला सागर,
खाली रह गई
मन की गागर।
-0-
सुषमा व मन जी बहुत सुन्दर सृजन । बधाई ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका विभा जी
Deleteसुषमा,मंजूषा जी, बहुत सुंदर भाव लिए हुए दोनों की कविताएँ अच्छी लगीं।बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सुदर्शन दीदी
Deleteसुन्दर रचनाओं हेतु हार्दिक बधाई आप दोनों रचनाकारों को।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार कविता जी
DeleteBahut sundar rachnayen hardik aabar dono rachnakaron ko
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार भावना जी
Deleteडा. सुशमा गुप्ता जी एवं मंजूषा दोनों की रचनाएं अत्यंत सार गर्भित हैं | अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली ! इतनी भावपूर्ण कविताओं के लिए आपको हृदय से बधाई | श्याम त्रिपाठी -हिन्दी चेतना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर रचनाएँ , दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका ज्योत्स्ना जी
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ReplyDeleteसुषमा जी, मंजूषा जी, बहुत सुंदर कविताएँ लिखी हैं !
हार्दिक बधाई आप दोनों को !!
हार्दिक आभार आपका ज्योत्स्ना जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ...सुषमा जी, मंजूषा जी को बहुत बधाई।
ReplyDeleteदोनों रचनाएं अति भावपूर्ण
ReplyDeleteखासकर मीलों चलकर भी मन की गागर खाली रह जाने और मिठास को खोकर खारेपन को पाने का मार्मिक चित्रण
बधाई
बहुत सुन्दर रचनाएँ, हार्दिक बधाई
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