कमबख्त़ पुराने दोस्त
पूर्वा
शर्मा
यादों की सूखी फसल को
फिर से लहलहाता कर गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
फिर जी गया मैं इस ज़िन्दगी को
वो कुछ हसीं पल याद दिला गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
दिल की तंग गलियों में
वे कमबख्त़ फिर से समा गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
मुस्कराहट कम ही नहीं होती
ऐसी दवा वे सभी मुझे दे गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
न जाने कौन-सा अर्क, कौन-सा इत्र
वे शीशी भर उड़ेल गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
महकता रहा रातभर मैं
और सुबह उनके ख़्वाब महका गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त
मिल गए
कमबख्त़ पुराने दोस्त क्या
मिले
मुझ कमबख्त़ को भी गुलज़ार कर
गए
-0-
बढ़िया है , पुराने दोस्तों के साथ वाली अल्हड़ रचना :)
ReplyDeleteखूब बधाई !
बहुत ही अच्छी रचना
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
एकदम नोस्टालजिक कर जाए, कुछ ऐसी कविता है आपकी...| मेरी ढेरों बधाई स्वीकारें...|
ReplyDeleteअच्छी रचना। बधाई
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना....बधाई
ReplyDeleteउत्तम रचना, बधाई स्वीकारें, पूर्वा जी।
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ ...बधाई स्वीकारें |
ReplyDeleteपूर्वा शर्मा
बहुत ही बढ़िया रचना पूर्वा जी... बहुत -बहुत बधाई !
ReplyDeleteबहुत ही शानदार काव्य...बधाई
ReplyDelete