कृष्णा वर्मा
1-तेरा जाना
किए जतन मन बहलाने को
मिलते नहीं बहाने
अधरों की हड़ताल देख कर
सिकुड़ गईं मुस्कानें।
मन का शहर रहा करता था
जगमग प्रीतम तुमसे
बिखरा गया सब टूट-टूट कर
चले गए तुम जब से।
चुहल मरा भटकी अठखेली
गुमसुम हुई अकेली
हँसता- खिलता जीवन पल में
बन गया एक पहेली।
सिमट गया मन तुझ यादों संग
हृदय कहाँ फैलाऊँ
कहो तुम्हारे बिन कैसे
विस्तार नया मैं पाऊँ।
2-स्वप्न उनके ही फलें
काल के संग जो चले
आज उसको ही फले
रोशनी ना हो सकेगी
वर्तिका जो ना जले।
जो निगल लेते हैं संकट
धैर्य को धारण किए
लड़खड़ाएँ लाख लेकिन
वो कभी गिरते नहीं।
बूँद माथे पर टपकती है
उसी के स्वेद की
जिसने पहरों की मशक़्क़त
चिलचिलाती धूप में।
पार करना आ गया
कठिन राहों को जिसे
मंज़िलें बाहें पसारे
मुंतज़िर उसको मिलें।
शूल चुभने की ख़लिश को
जो नहीं करते बयां
चरण उनके चूमता है
एक दिन झुक कर जहाँ।
-0-
कृष्णा जी ,
ReplyDeleteइतनी सुंदर रचनाएं पढकर , चुप कैसे रह सकता हूँ | बार -बार पढकर भी हृदय नहीं थकता है | इन भावों में जीवन की गहराई है, यथार्थ और सच्चाई है | बहुत ही सुंदर रचनाएं -श्याम त्रिपाठी -हिन्दी चेतना
शूल चुभने की ख़लिश को
ReplyDeleteजो नहीं करते बयां
चरण उनके चूमता है
एक दिन झुक कर जहाँ।
bahut gahan or sach abhivaykti meri bahut bahut badhai..
दिल को छूती रचनाएँ
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन के लिए हार्दिक बधाई
'तेरा जाना' मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति !
ReplyDelete'स्वप्न उनके'-सुन्दर , सकारात्मक , बेहद सशक्त रचना !!
हार्दिक बधाई आदरणीया कृष्णा दीदी |
मन को छू गई ये कमाल की रचनाएँ आदरणीय कृष्णा जी !
ReplyDeleteसादर नमन आपकी लेखनी को !
मेरी रचनाओं को सहज-साहित्य में स्थान देने के लिए आ. भाई काम्बोज जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसृजन की सराहना के लिए आप सभी मित्रों का हृदय से धन्यवाद।
ReplyDeleteअधरों की हड़ताल देख कर
ReplyDeleteसिकुड़ गईं मुस्कानें।
क्या बात है ! दोनों रचनाएँ मन को छू गई | मेरी हार्दिक बधाई...|
‘तेरा जाना ‘ बहुत मर्म स्पर्शी रचना है कृष्णा जी ,दूसरी कवितायें भी यथार्थ के रंग में रंगी सशक्त रचनायें हैं ।बहुत सारी बधाई ।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचनाएँ, बधाई.
ReplyDeleteवाह...शानदार
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