पथ के साथी

Tuesday, May 29, 2018

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1-कौन तुम ?
शशि पाधा
कौन तुम ?

चन्दन से भीगे
आँखों में रम जाते हो
कौन तुम मन- वीणा के
सोए तार बजाते हो ?

कौन तुम ?
हरित धरा को धूप ओढ़नी       
 तूने ही ओढ़ाई होगी  
खिली खिली सी पुष्प पँखुरी
तूने ही सहलाई होगी     
वायु की मीठी सिरहन में
क्या तुम ही मिलने आते हो ?
कौन तुम ओस कणों में
मोती सा मुस्काते हो

कौन तुम ?
 मन दर्पण में झाँकके देखूँ
तेरा ही तो रूप सजा है
नयन ताल में झिलमिल करता
तेरा ही प्रतिबिम्ब जड़ा है
 मेरा यह एकाकी मन
क्या तुम ही आ बहलाते हो?
कौन तुम रातों के प्रहरी
जुगनु सा जल जाते हो

कौन तुम ?
रंग तेरे की चुनरी प्रियतम
बारम्बार रंगाई मैंने
पथ मेरा तू भूल न जाए
नयन ज्योत जलाई मैंने
कभी-कभी द्वारे पे आ
क्या तुम ही लौट के जाते हो?
कौन तुम अवचेतन मन में
स्पंदन बन कुछ गाते हो

कौन तुम ?
 ऐसे तुम को बाँधूँ मैं
 इस बार जो आओ लौट न पाओ
बंद करूँ नैनों के द्वारे
चाह कर भी तुम खोल न पाओ
अनजानी सी इक मूरत बन
क्या तुम ही मुझे सताते हो?
कौन तुम पलकों में सिमटे
सपनों सा सज जाते हो
 कौन तुम ?

-०-
2- एहसास

डॉ.सिम्मी भाटिया

किसको है
एहसास
कौन है वो
जिसको दिखाऊँ
अपने जख्म
अंदर ही अंदर घुट
गमों को छुपाऊँ
आने ना दूँ
आँसू
हौले- से मुस्कुराऊँ
दम तोड़ रही
ख्वाहिशें
साँसें रुक ना जाएँ
हो कोई ऐसा
देख
जिसको जी जाऊँ
स्पर्श मात्र से
ऐसे खिल जाऊँ
मंत्र मुग्ध हो जाऊँ
उसकी
मीठी बातों में
उलझी ऐसी
उसके ताने -बानों में
देख सके जो मेरा ग़म
कह सके जो है मेरे संग
कौन है वो
जिसको दिखाऊँ
अपने जख्म
किसको है
एहसास।

9 comments:

  1. कौन तुम,एहसास,bahut achchhi lagi donon rachnayen meri hardik shubhkamnaye..

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  2. शशि पाधा जी की 'कौन तुम ' और सिम्मी भाटिया जी की 'अहसास 'सुन्दर रचनाएँ । दोनों को ढेर बधाई ।

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  3. आदरणीया शशि जी एवं डॉ सिम्मी जी को सुन्दर एवं सार्थक रचनाओं हेतु हार्दिक बधाई .

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  4. दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर। शशि जी तथा सिम्मी जी को बहुत बधाई।

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  5. शशि पाधा जी , सिम्मी जी बहुत सुंदर सार्थक रचनाएँ ..आप दोनों को हार्दिक बधाई 👏👏👏👏🌹🌹🌹🌹🌹

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  6. उत्सुकता शांत करती,प्रश्नवाचक सुन्दर कवितायेँ | सुरेन्द्र वर्मा |

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  7. शशि पाधा जी की कविता ने पन्त जी की मौन निमन्त्रण स्मरण करा दिया."न जाने कौन, अये द्युतिमान!/ जान मुझको अबोध, अज्ञान,/सुझाते हो तुम पथ अनजान,/फूंक देते छिद्रों में गान"....अनन्त की छाया सृष्टि के कण कण में है,उसी भाव बोध को शशि जी ने सहजता से व्यक्त किया है,वहीं डॉ सिम्मी भाटिया की कविता विरह के क्षणों की सहज अभिव्यक्ति है।दोनों को बधाई।

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  8. बहुत सुंदर कविताएँ हैं शशि पाधा जी एवं सिम्मी जी

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  9. बहुत ही सुंदर,सरस रचनाएँ!
    आ.शशि दीदी एवम् सिम्मी जी को हार्दिक बधाई!!

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