1-कृष्णा वर्मा
आओ फिर मुसकाएँ
आओ चलो मुसकाएँ
चलो कहीं नदिया के तीरे
पांव भिगो बतियाएँ
हाथों से लहरों को
ठेलें
काग़जी नाव तिराएँ
पानी के दर्पण में झाँक
के
चेहरे पढ़ें पढ़ाएँ।
ज़िंदगी की दौड़ में
जो पीछे छूटे ख़्वाब
ढूँढ के लाए उन्हें फिर
हाथ में ले हाथ
अनकही बातें पड़ीं जो
मन के कोने में
बांट के आपस में
चलो मन को सरसाएँ।
छल रही है उम्र पल-पल
रोक लें कैसे इसे
क्यों ना अब हम संग
चलने के बढ़ाएँ सिलसिले
ज़िंदगी की धूप में
जो चाहते कुम्हलाई थीं
क्यों ना सींच प्यार से
फिर से तरुणाई भरें।
पूर्णिमा की रात है
चंद्रिका पुरज़ोर है
शबनमी कतरों में भीग
मन को मन से जोड़ लें
चलो भरें ख़लाओं को और
मन की छीजन को मिटाएँ
चांदनी के घूँट पीके
ज़िंदगी को जगमगाएँ।
-0-
2-स्वप्न उनके ही फलें
काल के संग जो चले
आज उसको ही फले
रोशनी न हो सकेगी
वर्तिका जो न जले।
जो निगल लेते हैं संकट
धैर्य को धारण किए
लड़खड़ाएँ लाख लेकिन
वो कभी गिरते नहीं।
बूँद माथे पर टपकती है
उसी के स्वेद की
जिसने पहरों की मशक़्क़त
चिलचिलाती धूप में।
पार करना आ गया
कठिन राहों को जिसे
मंज़िलें बाहें पसारे
मुंतज़िर उसको मिलें।
शूल चुभने की ख़लिश को
जो नहीं करते बयाँ
चरण उनके चूमता है
एक दिन झुककर जहाँ।
-0-
2 -पूनम सैनी
जब-जब होता है आगाज़
उस स्वप्न, नहीं,
दु:स्वप्न का।
सिहर उठता है,
मेरा हर रोम।
काँप जाती है,
साँसों की रफ़्तार भी।
कैद -सी हो जाती है जुबाँ
सिले होठों के पीछे।
क्रूर आँखों से लड़ती ये
हैरान परेशान नज़रें।
उसके बढ़ते कदमों की आहट से,
खामोश होती धड़कन,
महसूस होती है अब भी।
बस चीखता है दर्द दिल में,
लिए उलाहने अनेक।
प्राणहीन-सी कर देने वाली,
वो काली परछाई,
फिर वो एक बर्बर मुस्कान,
जैसे कर जाती है जड़,
मेरी स्तब्धता को।
फिर होती है शुरूआत,
एक नए युद्ध की।
चिर, सर्वव्यापी समर,
खुद-से-खुद तक।
-0-
सब एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteआओ फिर मुस्कायें, अद्भुत, यह वर्तमान की आवश्यकता है, हमने अपना सहज जीवन एक कोने में रखकर कृत्रिमता को ओढ़ लिया।
ReplyDeleteइतनी रोचक एवं प्रासंगिक रचना हेतु आदरणीया कृष्णा जी को हार्दिक बधाई।
सरस जी की रचना उत्कृष्ट। इस मनोवैज्ञानिक विश्लेषण हेतु हसर्दिक बधाई।
आदरणीया कृष्णा जी हृदयस्पर्शी सृजन के लिए हार्दिक बधाई 🙏🙏🙏सादर प्रणाम🌷🌷🌷🌷
ReplyDeleteप्रिय पूनम बहुत सुंदर लिखा,बधाई 🌷🌷🌷 ...शुभाशीष
सुन्दर सुन्दर और प्यारी प्यारी रचनाओं के लिए कृष्णा जी और पूनम जी को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआदरणीय कृष्णा जी, दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर। मन की छीजन ... लाजवाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteपूनम सैनी सुंदर सृजन।
दोनों रचनाएँ बहुत सशक्त ,सुन्दर ! आदरणीया कृष्णा दीदी को हार्दिक बधाई !
ReplyDelete'समर' सुन्दर सृजन प्रिय पूनम सैनी , खूब बधाई !
प्रिय पूनम सैनी को सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
eka se badhkar eak rchana sabhi ko meri hardik badhai...
ReplyDeleteसुंदर सरस कविताएँ।
ReplyDeleteसभी रचनाएँ लाजवाब .।।
ReplyDeleteकोई किसी से कम नहीं ...
तीन अलग अलग भावों को उकेरती तीन अलग अलग रचनाएँ और सभी बेहतरीन...आप तीनों को बहुत बधाई...|
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