कमला निखुर्पा
1
जब-जब बिखरा है नीम अँधेरा,
तेरे नेह से भरा मेरे नैनों का दिया।
मधुर-मधुर जली यादों की बाती ,
जगमग हुई मन- देहरी।
2
भली-भली- सी
गुलाबी कली
खिलने चली
संग हवा के
महकी-झूमी
पंख- पंखुड़ी लगा
उड़ने चली
छुए जो भंवर
काँपी-सिहरी
3
झील- दर्पण
बादलों के ओट से
निहारता
रहा
खुद को रात भर चाँद
सूरज को देख अब आई है लाज
उड़ा-उड़ा है रंग आज
4
था बहुत बड़ा शून्य
मेरे अस्तित्व के संग ,
समेटा तुमने जो अंक में अपने ,
अनमोल होने का एहसास हो गया ।
5
‘विस्मय’ के संग
खड़ी थी जिंदगी
जाने कितने ‘प्रश्नचिह्नों’ से घिरी
खोजती हर सवाल का जवाब
ढूँढती रही
नन्हा-सा ‘अल्प विराम’
पर हर बार घिरी ‘उद्धरणों’ से
तो अपने ही ‘कोष्ठकों’ में बंद हो गई
लगा के ‘पूर्ण विराम’।
6
एक पल
देता सब कुछ बदल
क्षण में स्वर्ग सजे
पल में नरक रचे
बिताए कैसे धरती
वो एक पल
7
डरी- सहमी हैं
भेड़ -सी मासूम बेटियाँ
जाने कब कोई भेड़िया
नोच ले बोटियाँ
दहशत में माँएँ
काश कि कोख में छुप जाएँ
ये नन्हीं सी गुड़िया।
8
सुबह से ही
आसमान में मंडरा रहे हैं
चीलों के झुण्ड
जरूर कहीं किसी चिरैया के
घायल हैं पंख ।
9
वर्तमान की गोद में
नन्हा भविष्य लहूलुहान
अतीत फिर भी महान ।
10
चलती कलम
वर्तनी की त्रुटि
लाल सियाही का गोला
सुधार देती है इमला बच्चों का
चलती जुबान की गलती
कभी होगी गोलबंद ?
-०- प्राचार्या केन्द्रीय विद्यालय पिथौरागढ़ ( उत्तराखंड)
वाह, सुंदर सृजन। बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ, हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसबसे अधिक निम्नांकित हैं
सुबह से ही
आसमान में मंडरा रहे हैं
चीलों के झुण्ड
जरूर कहीं किसी चिरैया के
घायल हैं पंख ।
9
वर्तमान की गोद में
नन्हा भविष्य लहूलुहान
अतीत फिर भी महान ।
आभार सभी साथियों का । अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए धन्यवाद भैया
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएँ....हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसभी एक से बढ़कर एक क्षणिकाएँ ! 'अतीत फिर भी महान' अनुपम !!
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई कमला जी !!
बहुत सुन्दर रचनाएं |कुछ में मनोवैज्ञानिक सूझ आकर्षित करती है | सुरेन्द्र वर्मा |
ReplyDeleteeak se badhkar eak rachna sabhi meri hardik shubhkamnayen...
ReplyDeleteबहुत कुछ सोचने को मजबूर करती क्षणिकाएँ...हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteढूँढती रही
नन्हा-सा ‘अल्प विराम’
पर हर बार घिरी ‘उद्धरणों’ से
तो अपने ही ‘कोष्ठकों’ में बंद हो गई
लगा के ‘पूर्ण विराम’।..... वाह!