तुम्हारी प्रतीक्षा
में
डॉ.कविता भट्ट
डॉ.कविता भट्ट
बसन्त की आगन्तुक
रंगीन परन्तु मौन कथा है तुम्हारी प्रतीक्षा में......
चौंककर जागती हूँ जब
कभी रात में
पास अपने न पाती हूं
तुम्हें रात में
विरहिणी बनी मैं न अब
सोऊँगी
इसी पीड़ा के कड़ुवे सच
में खोऊँगी
तुम्हारी प्रतीक्षा में......
बसंत है परन्तु उदास
है बुरांसों की लाली
रंगों की होली होगी
फीकी खाली थी दिवाली
खुशियाँ खोखली और
हथेलियाँ हैं खाली
राहें देख लौटती आँखें
उनींदी ,बनी हैं रुदाली
तुम्हारी प्रतीक्षा में......
प्रेमी पर्वत के सीने
पर सिर रखकर सोती नदी ये
धीमे से अँगड़ाई लेकर
पलटती सरकती नदी ये
कहती मुझे चिढ़ा कहाँ
गया प्रेमी दिखाकर सपने झूठे
चाय की मीठी चुस्कियाँ
बिस्तर की चन्द सिलवटें हैं
तुम्हारी प्रतीक्षा में......
अब तो चले आओ ताकि साँसों
में गर्मी रहे
मेरे होंठों पर मदभरी
लालियों की नर्मी रहे
चाहो तो दे दो चन्द
उष्ण पलों का आलिंगन
बर्फीली पहाड़ी हवाओं
से सिहरता तन-मन
तुम्हारी प्रतीक्षा में......
अपने प्रेमी पहाड़ के
सीने पर
सिर रखकर करवटें बदलती
नदी,
बूढ़े-कर्कश पाषाण-हृदय
पहाड़ संग,
बुदबुदाती, हिचकती, मचलती नदी।
तुम्हारी प्रतीक्षा में......
-0-
डॉ कविता जी "तुम्हारी प्रतीक्षा में" बहुत भावपूर्ण रचना है सभी पंक्तियाँ अनेक बार पढ़ी और बार बार पढ़ने को मन करता है | हार्दिक बधाई स्वीकारें |
ReplyDeleteविरह व्यथित मन के भावों को उकेरती सुन्दर रचना,प्रकृति के आलम्बन से विरह के रंग गहन पीड़ा के संग उभरे है।सुन्दर रचना हेतु डॉ0 कविता जी को बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...कविता जी बधाई।
ReplyDelete" तुम्हारी प्रतीक्षा में " कविता जी की रचना में विरहणी के मन की पीड़ा को सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है । दिली बधाई कविता जी ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteएक अव्यक्त पीड़ा जो प्रेम का एक अभिन्न अंग है, उसको बहुत मर्मस्पर्शी रूप से रच दिया है आपने...|
ReplyDeleteबहुत बधाई...|
बेहद सुन्दर व भावपूर्ण रचना कविता जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता जी...हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबधाई
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , हार्दिक बधाई कविता जी
ReplyDelete