1-दमखम-कृष्णा वर्मा
हज़ारों आँधियाँ आएँ
करोड़ो हो बर्फबारी
खिलेंगे गुल किसी सूरत
हो चाहे लाख दुश्वारी।
सब्र रखो हिरासत में
जो आनन्द मानना चाहो
किला अपने मनोबल का
किसी सूरत में ना ढाओ।
ना ज़्यादा दिन चलें हैं ज़ुल्म
तुगलक हार जाते हैं
भयानक रात हो कितनी
सवेरे फिर भी आते हैं।
डराते हो हमें कि छोड़ दें
हम सारा जहाँ अपना
हो कितना भूत ताकतवर
निडर नहीं छोड़ते सपना।
मेरे लब पर दुआएँ हैं
है तेरे हाथ में ख़ंजर
जो दम है तेरे ख़ंजर में
तो कर मेरी दुआ बंजर।
मैं देखूँ झूठ तेरा कैसे
सच को कफ़न पहनाए
मेरे जज़्बे मेरे साहस को
कैसे घाट पहुँचाए।
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विरोधरस की सत्योंमुखी सम्वेदना से युक्त सार्थक कविता
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय।
Deleteआ० भाई काम्बोज जी हार्दिक आभार।
ReplyDeleteसुंदर भावों भरी सशक्त रचना
ReplyDeleteहार्दिक बधाई दीदी
'हो कितना भूत ताकतवर \निडर नहीं छोड़ते सपना'आत्मबल का तुमुलनाद करती,उज्ज्वलतम भविष्य का स्वप्न देखती सुंदर कविता हेतु कृष्णा जी बधाई|
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
बहुत प्रेरणादायक और ओजपूर्ण रचना...बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ..हार्दिक बधाई कृष्णा जी
ReplyDeleteसुंदर भावों से सजी रचना..कहीं कहीं लय अटकाव है ...
ReplyDeleteबधाई
बहुत सुंदर ..ओजपूर्ण रचना...हार्दिक बधाई कृष्णा जी!!!
ReplyDeleteकृष्णा जी सुन्दर ओजपूर्ण कविता के लिये बधाई । बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं ये निराशा में आशा जगाने वाली -भयानक रात हो कितनी सबेरे फिर भी आते हैं ।
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार।
ReplyDeleteBahut sundar bhav bahut bahut badhai.
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