1- सुदर्शन रत्नाकर
मुक्तक
1
रूप कब ढल जाए क्या पता
तीर कब चल जाए क्या पता
धूप-छाँव भरी ज़िंदगी में
साँस कब छल जाए क्या पता ।
2
दुख से भरी मेरी कहानी
बची न इसमें छाँव सुहानी ।
मुझको इसकी ख़बर ही नहीं
कब आई, कब
गई जवानी।
3
जीवन तपते क्या देखा है
जीवन बस लक्ष्मण रेखा है
धीरे-धीरे पता चलेगा
बचा नियति का क्या लेखा है।
4
फूलों को देखा मुरझाते
काँटों को देखा मदमाते
हँसता है इक दीवाना क्यों
लोगों पर बस आते -जाते।
5
सारे घर का शृंगार होती हैं बेटियाँ
माता-पिता का दुलार होती हैं बेटियाँ
घर भर की रौनक़ ,सबकी
प्यारी होती हैं
खुशबू का इक संसार होती हैं बेटियाँ ।
-0-
2-कमला घटाऔरा
1-जीवन साँझ
रहने दो स्वतंत्र उन्हें
कोई बोझ मत डालो
एक सृष्टि जो हमने रची थी
बन गई है अब
वह आप रचनाकार ।
उन पर आस मत रखो
देखें हमें आ आकर
खाँसते डोलते बूढ़े शरीरों को
उन्हें संभालना है
संसार स्वयं का
जो उन की रचना है ।
इस जीवन सांझ में
तुम देखो बस इतना
तुम्हारी वंश बेल
किस तरह फल फूल रही है ।
हमारी कामनायें ही
मानों पंख लगा
आसमां को छू रहीं हैं ।
-0-
२-जीवन
जीवन
जैसे धरती पर
लगने वाला एक मेला
थोड़ी हँसी
थोड़ी गमी
कुछ देर का खेला'
फिर धूल मिट्टी
बचता कचरा
जाने की बेला
मनवा अकेला ।
3-मृत्यु
जन्म से शुरू हुई
एक जीवन रेखा
चलते चलते जब
अंतिम सिरे को छूती है
मृत्य नाम धार लेती है।
चमकता दिन जैसे
रात में बदल जाये
रौशनी छिन जाती है ।
-0-
सुदर्शन रत्नाकर जी बहुत सुंदर मनभावन मुक्तक ।
ReplyDeleteकमला घटाऔरा जी बहुत सुन्दर सार्थक रचनाएँ ।
हार्दिक बधाई आप दोनों को
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ReplyDeleteआ.सुदर्शन जी एवं आ.कमला जी
ReplyDeleteजीवन दर्शन को प्रतिबिंबित करती बेहतरीन रचनाएं ...
बधाई..
सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआ.सुदर्शन जी एवं आ.कमला जी ..सुंदर सृजन के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई।!
ReplyDeleteबड़ी प्यारी रचनाएँ हैं...| आप दोनों को बहुत बधाई...|
ReplyDeleteसभी रचनाएँ सुंदर हैं,सुदर्शन जी व कमला जी बधाई |पुष्पा मेहरा
ReplyDeleteआप सब का आभार रचना को पसंद किया और मुझे अमूल्य उर्जा मिली आगे बढ़ने के लिये ।
ReplyDeleteआदरणीय रामेश्वर जी का हृदय से धन्यबाद आभार जिन्होंने अपनी साहित्यक पत्रिका में मेरी रचना को स्थान दिया ।
सुंदर भावपूर्ण रचनाएँ !
ReplyDeleteदोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
Dono rachnakaron eak sebadhkar eak kikha hai ...bahut achhi lagi sabhi rachnaye meri hardik badhai...
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